iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 2023-24 के वर्तमान फसल वर्ष (जुलाई-जून) के दौरान पश्चिम बंगाल चावल के उत्पादन में शीर्ष स्थान से फिसलकर चौथे नम्बर पर आ गया।
हालांकि वहां जायद (ग्रीष्मकालीन) सीजन में भी धान की खेती होती है मगर इसके अनुमानित उत्पादन आंकड़ों को शामिल करने के बावजूद वह चावल उत्पादन में शीर्ष स्थान पर नहीं पहुंच पाएगा।
वैसे जायद फसल से उत्पादन के कुल आंकड़े में कुछ सुधार हो सकता है। दूसरी ओर तेलंगाना चावल के उत्पादन में ऊंची पायदान पर पहुंच रहा है। वहां प्रत्येक वर्ष उत्पादन में बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है। अब वह उत्तर प्रदेश के बाद देश का दूसरा सबसे प्रमुख चावल उत्पादक राज्य बन गया है।
क्षेत्रफल, उत्पादन एवं उत्पादकता के विश्लेषण से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में चावल के उत्पादन में गिरावट आ रही है। 2019-20 के मार्केटिंग सीजन के दौरान पश्चिम बंगाल देश का सबसे प्रमुख चावल उत्पादक राज्य था जहां 158.80 लाख टन का शानदार उत्पादन हुआ था जो कुल राष्ट्रीय उत्पादन का 13.36 प्रतिशत रहा था।
इसकी तुलना में वहां 2023-24 के मौजूदा सीजन में चावल का उत्पादन घटकर 115.20 लाख टन का 9.3 प्रतिशत पर सिमट जाने का अनुमान है। हालांकि 2023-24 सीजन के दौरान वहां धान का क्षेत्रफल 40.10 लाख हेक्टेयर रहा जबकि जायद सीजन में भी करीब 10 लाख हेक्टेयर में इसकी खेती होने की उम्मीद है जिससे कुल रकबा 50 लाख हेक्टेयर के आसपास पहुंच सकता है मगर वह 2019-20 के उत्पादन क्षेत्र 54.90 लाख हेक्टेयर से नीचे ही रहेगा।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार अन्य प्रांतों के मुकाबले बंगाल में धान की जलवायु प्रतिरोधी किस्मों को अपनाने की गति धीमी है और केन्द्रीय पूल के लिए चावल की खरीद भी कम मात्रा में होती है।
वहां सिंचाई की सुविधा भी तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा एवं छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की तुलना में सीमित क्षेत्रफल में उपलब्ध है इसलिए धान की अधिकांश खेती वर्षा पर आश्रित इलाकों में होती है।
चूंकि तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश के मुकाबले बंगाल में दक्षिण-पश्चिम मानसून की सामान्य वर्षा का स्तर ऊंचा रहता है इसलिए किसानों को बारिश वाले क्षेत्रों में धान की खेती करने में ज्यादा कठिनाई नहीं होती है।