iGrain India - नई दिल्ली। राजस्थान एवं मध्य प्रदेश सहित अन्य प्रमुख उत्पादक राज्यों की थोक मंडियों में सरसों का भाव नरम होने से किसानों को अपने उत्पादन का बड़ा भाग रोककर रखने के लिए विवश होना पड़ रहा है। आमतौर पर देखा जाता है कि फसल की कटाई-तैयारी के समय किसान भारी मात्रा में मंडियों में अपना माल उतारते हैं लेकिन जब भाव घटकर न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी नीचे आ जाता है तब उसे बिक्री की गति धीमी करनी पड़ती है। सर्स्नो के राष्ट्रीय उत्पादन में राजस्थान और मध्य प्रदेश का योगदान करीब 57 प्रतिशत रहता है। एक अध्ययन से पता चलता है कि किसान अब कीमतों के बारे में पानी स्वतंत्र धारणा बनाते हैं या फिर आसपास के किसानों की देखादेखी करके सरसों को बेचने या रोकने का निर्णय लेते हैं।
अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार किसान सामान्यतः कम से कम तीन माह के लिए अपनी फसल का स्टॉक करते हैं मगर अगली फसल से पहले उसके अधिकांश भाग की बिक्री कर देते हैं। मध्य प्रदेश में 34 प्रतिशत एवं राजस्थान में 70 प्रतिशत सरसों के विपणन योग्य अधिशेष स्टॉक को किसानों द्वारा रोका जाता है और जब बाजार भाव कुछ ऊंचा होता है तब इसकी बिक्री की जाती है। एमएसपी पर सरकारी खरीद के दौरान भी किसान अपना माल बेचने का प्रयास करते हैं।
राजस्थान में अधिक स्टॉक रोककर सरसों उत्पादक ज्यादा रिस्क लेते हैं और इसमें कई बार उसे फायदा तथा कभी-कभी नुकसान भी होता है। किसानों द्वारा मध्य प्रदेश में करीब 107 दिन तथा राजस्थान में औसतन 110 दिन तक सरसों का स्टॉक रोका जाता है। इस बार सरसों का घरेलू उत्पादन बेहतर हुआ है और अगले महीने इसकी सरकारी खरीद आरम्भ होने वाली है। हरियाणा में आज यानी 26 मार्च से सरसों की खरीद आरम्भ करने की घोषणा हुई थी।