iGrain India - जेनेवा । अमरीका तथा ऑस्ट्रेलिया ने कहा है कि भारत में गन्ना पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू टीओ) की कृषि संधि में नियत सीमा में अधिक सब्सिडी दी गई है जिससे वैश्विक व्यापार पर असर पड़ सकता है।
वर्ष 2018-19 से 2021-22 के चार वर्षों की अवधि में गन्ना के लिए भारत के बाजार मूल्य समर्थन पर आंकड़ों के संकलन के आधार पर इन दोनों देशों ने हाल ही में डब्ल्यू टीओ की क्रशिंग समिति के पास एक रिपोर्ट जमा की है जिसमें कहा गया है
कि इन सभी चार वर्षों के दौरान भारत में चीनी पर दी गई सब्सिडी उत्पादन के मूल्य से 90 प्रतिशत से अधिक रही जबकि इसका मान्य स्तर केवल 10 प्रतिशत है।
अमरीका और ऑस्ट्रेलिया ने कहा है कि वह इस सम्बन्ध में भारत तथा अन्य सदस्य देशों के साथ बातचीत करने के लिए तैयार है क्योंकि वैश्विक चीनी बाजार पर इस सब्सिडी का असर पड़ा है।
दरअसल भारत में केन्द्र सरकार द्वारा प्रति वर्ष गन्ना के लिए उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) निर्धारित किया जाता है जो सभी चीनी मिलों के लिए बाध्यकारी है।
इसके अलावा पांच प्रांतों में गन्ना के लिए राज्य समर्थित मूल्य (सैप) के निर्धारण का भी प्रचलन है लेकिन इसमें कभी-कभार बढ़ोत्तरी की जाती है जो केवल उन राज्यों की चीनी मिलों को चुकाना पड़ता है।
गन्ना के एफआरपी एवं सैप में होने वाली वृद्धि से चीनी का लागत खर्च ऊंचा हो जाता है इसलिए वैश्विक बाजार पर इसका प्रभाव पड़ना मुश्किल रहता है। इतना अवश्य है कि इससे गन्ना उत्पादकों को काफी राहत मिलती है।