iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार की अधीनस्थ एजेंसी- भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) तथा उसकी सहयोगी प्रांतीय एजेंसियों द्वारा चालू रबी मार्केटिंग सीजन के दौरान 15 मई तक राष्ट्रीय स्तर पर 19,96,399 किसानों से करीब 255.24 लाख टन गेहूं की खरीद की गई।
इसके एवज में 16,22,404 किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के आधार पर 46,79,798 लाख रुपए का भुगतान भी किया जा चुका है।
पिछले साल 15 मई तक 259 लाख टन से कुछ अधिक गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी जबकि पूरे सीजन की खरीद 262 लाख टन तक पहुंची थी।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वर्तमान रबी मार्केटिंग सीजन में 15 मई 2024 तक पंजाब में 122.31 लाख टन, हरियाणा में 70.32 लाख टन, मध्य प्रदेश में 45.66 लाख टन, उत्तर प्रदेश में 8.47 लाख टन, राजस्थान में 8.35 लाख टन, बिहार में 9312 टन, उत्तराखंड में 762 टन तथा हिमाचल प्रदेश में 2576 टन गेहूं की खरीद हुई।
इस खरीद से पंजाब में 7,71,481 किसान, मध्य प्रदेश में 5,67,342, हरियाणा में 4,47,943, उत्तर प्रदेश में 1,37,288, राजस्थान में 68,674 तथा बिहार में 3005 किसान लाभान्वित हुई।
इसमें से 16,22,404 किसानों को गेहूं के मूल्य का भुगतान प्राप्त हो चुका है जबकि शेष किसानों के बैंक खाते में भी राशि स्थानान्तरित की जा रही है।
केन्द्रीय खाद्य मंत्रालय ने चालू रबी मार्केटिंग सीजन के लिए पंजाब में 130 लाख टन, हरियाणा एवं मध्य प्रदेश में 80-80 लाख टन, उत्तर प्रदेश में 60 लाख टन,
राजस्थान में 20 लाख टन तथा बिहार में 2 लाख टन सहित राष्ट्रीय स्तर पर कुल 372.90 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य निर्धारित किया है जबकि मई माह का पहला पखवाड़ा बीतने तक केवल 255 लाख टन की खरीद संभव हो सकी। गेहूं की लगभग 90 प्रतिशत सरकारी खरीद अप्रैल-मई में होती है।
जानकारों का कहना है कि सभी प्रमुख उत्पादक राज्यों में गेहूं की आवक की गति धीमी पड़ गई है और सरकारी एजेंसियों की खरीद की रफ्तार भी तेज नहीं है।
ऐसा प्रतीत होता है कि किसानों ने आगे भाव बढ़ने की उम्मीद से गेहूं का स्टॉक रोकना शुरू कर दिया है। विश्लेषकों के मुताबिक मौजूदा माहौल को देखते हुए यदि इस बार गेहूं की कुल सरकारी खरीद 300 लाख टन तक भी पहुंच जाए तो बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाएंगी।
मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में गेहूं की खरीद पर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (2275 रुपए प्रति क्विंटल) से ऊपर 125 रुपए प्रति क्विंटल का अतिरिक्त बोनस दिए जाने का निर्णय भी कारगर साबित नहीं हो रहा है।