iGrain India - नई दिल्ली । इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स फेडरेशन (इरेफ) के अध्यक्ष ने कहा है कि पिछले साल के मुकाबले चालू वर्ष (2024) के दौरान भारत से बासमती चावल के निर्यात में 5 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है।
सेला चावल का निर्यात 90 लाख टन एवं सफेद चावल का शिपमेंट 15 लाख टन के करीब होने की संभावना है। वर्ष 2023 में देश से करीब 49 लाख टन बासमती चावल का निर्यात हुआ जो अब तक का दूसरा सबसे ऊंचा स्तर रहा।
इसके साथ-साथ 75 लाख टन सेला गैर बासमती चावल एवं 39 लाख टन सफेद (कच्चे) चावल का भी शिपमेंट किया गया था।
फेडरेशन के अध्यक्ष के अनुसार पश्चिम एशिया एवं यूरोपीय देशों के लिए सामुद्रिक परिवहन खर्च (मिसिंग रेट) में बढ़ोत्तरी होने से भारतीय बासमती चावल का निर्यात प्रभवित होने की संभावना है।
इसके कुछ आरंभिक संकेत भी मिल रहे हैं। यूरोप को भेजने के लिए 40 फीट लम्बे कंटेनर का किराया भाड़ा 1000 डॉलर से बढ़कर 3000 डॉलर पर पहुंच गया है।
लाल सागर के जल मार्ग से आवागमन में बाधा पड़ने के कारण भी भारतीय बासमती चावल के निर्यात शिपमेंट पर प्रतिकूल असर पड़ने की संभावना है।
आपूर्ति एवं उपलब्धता में बढ़ोत्तरी होने तथा कीमतों में 8-10 रुपए प्रति किलो की गिरावट आने से घरेलू प्रभाग में बासमती चावल की मांग एवं खपत में अच्छी बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद है।
भारत से निर्यात होने वाले पूसा बासमती चावल का भाव नवम्बर 2023 में बढ़कर 1550 डॉलर प्रति टन की ऊंचाई पर पहुंच गया या जो अप्रैल 2024 तक आते-आते घटकर 1400 डॉलर प्रति टन के करीब रह गया।
जो मिलर्स एवं निर्यातक अक्टूबर में नई फसल के आने से पूर्व ऑफ या लीन सीजन में बासमती चावल से बेहतर कमाई होने की उम्मीद लगा रहे थे वे अब दुविधा ग्रस्त हो गए हैं क्योंकि इसके दाम में गिरावट आना अच्छा संकेत नहीं है।
मिलर्स- निर्यातकों को परिवहन, खरीद एवं भंडारण के मद में पहले से ही भारी धन राशि खर्च करनी पड़ रही है। भारत से सफेद गैर बासमती चावल के निर्यात पर पाबंदी लागू होने से थाईलैंड, वियतनाम,
पाकिस्तान और यहां तक कि चीन को भी परम्परागत भारतीय बाजारों को अपने कब्जे में लेने का अवसर मिल रहा है। फेडरेशन के अध्यक्ष का कहना है कि सरकार को सेला चावल पर लागू 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क हटा लेना चाहिए।