iGrain India - अहमदाबाद । मसाला उद्योग एवं व्यापार क्षेत्र की एक अग्रणी संस्था- फेडरेशन ऑफ इन्डियन स्पाइस स्टैक होल्डर्स (फिस्स) ने मसालों एवं मसाला उत्पादों में एथीलीन ऑक्साइड (ईटीओ) के इस्तेमाल की वजह का बेहतरीन ढंग से खुलासा किया है।
भारतीय मसाले दुनिया भर में खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं लेकिन हाल के समय में वैश्विक बाजार से इन मसालों को बाहर करने का जो प्रयास हुआ है और हो रहा है वह निश्चित रूप से गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है।
उपभोक्ताओं के स्वस्थ्य के प्रति चिंता जायज और इसके परिप्रेक्ष्य में यह देखना आवश्यक है कि मसाला मिक्स कितना सुरक्षित है।
फिस्स के चेयरमैन का कहना है कि मसालों के ट्रीटमेंट के लिए एथीलीन ऑक्साइड का उपयोग किया जाता है। कैंसर पर अनुसंधान की अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी द्वारा एथीलीन ऑक्साइड को ग्रुप 1 कार्सिनोजेन के तौर पर वर्गीकृत किया गया है जो स्वास्थ्य के लिए गंभीर जोखिम (खतरा) उत्पन्न कर सकता है।
इसमें ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम भी शामिल है। फिस्स के चेयरमैन ने कहा है कि मसालों में एथीलीन ऑक्साइड का इस्तेमाल वस्तुतः लोगों के स्वास्थ्य के लिए किया जाता है।
अगर खाद्य उद्देश्य में इस्तेमाल होने वाले मसालों को सही तरीके से प्रोसेस्ड (प्रसंस्कृत) नहीं किया जाता है तो उसमें सूक्ष्म कीटाणु उपस्थित रह सकते हैं।
साल्पोनेला, ई- कोली, एफलेटोक्सिन एवं कॉलीफॉर्म जैसे जीवाणु इन मसालों में मौजूद रहते हैं जो शरीर के लिए घातक साबित होते हैं।
इसको मसालों से हटाने के लिए अक्सर एथीलीन ऑक्साइड का उपयोग करना पड़ता है। इस इन जीवाणुओं की मात्रा घटकर नियंत्रण में आ जाती है और इसका घातक साइड इफैक्ट काफी हद तक समाप्त हो जाता है।
फिस्स का मानना है कि एथिलीन ऑक्साइड का वर्तमान प्रकरण वैश्विक बाजार में सबसे प्रमुख मसाला निर्यातक देश के रूप में भारत की साख, प्रतिष्ठा एवं विश्सनीयत को छिन्न-भिन्न कर सकता है
और इसलिए निश्चित रूप से इस मामले पर विशेष ध्यान दिए जाने की सख्त आवश्यकता है। लोगों को इसकी अवधारणा को स्पष्ट रूप से समझाना पड़ेगा और यह भी स्पष्ट करना पड़ेगा कि एथीलीन ऑक्साइड कोई कीटनाशक रसायन नहीं है।