iGrain India - नई दिल्ली । हालांकि खरीफ कालीन फसलों के बिजाई क्षेत्र में शानदार बढ़ोत्तरी हो रही है और दलहन, तिलहन, कपास तथा गन्ना के रकबे में गत वर्ष के मुकाबले अच्छी वृद्धि हुई है जबकि धान का क्षेत्रफल पिछले साल के लगभग बराबर है लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा सामान्य औसत से करीब 14 प्रतिशत कम हुई है।
मौसम विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि 1 से 28 जून 2024 के दौरान देश के 724 जिलों में से कम से कम 54 प्रतिशत जिलों में वर्षा का या तो भारी अभाव रहा या बारिश नहीं अथवा नगण्य हुई यह चिंताजनक स्थिति है।
यद्यपि मानसून धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है और कई देशों में जरूरत से ज्यादा बारिश हो चुकी है मगर अन्य इलाकों में वर्षा के अभाव तथा ऊंचे तापमान के कारण खरीफ फसलों की बिजाई में बाधा पड़ रही है।
ध्यान देने की बात है कि अभी तक देश के प्रमुख बांधों एवं जलाशयों में पानी का स्तर काफी नीचे है इसलिए नहरों से भी किसानों को फ़सलों की बिजाई एवं सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध नहीं हो रहा है। वर्षा पर आश्रित क्षेत्रों में फसलों की खेती मानसून पर ही निर्भर रहती है।
चालू खरीफ सीजन के दौरान किसानों का रुझान दलहन फसलों के साथ-साथ मक्का की तरफ भी ज्यादा है। दूसरी ओर अन्य मोटे अनाजों या श्रीअन्न कीखेती में उत्पादकों का उत्साह एवं आकर्षण घटने के संकेत मिल रहे हैं क्योंकि उसका दाम ज्यादा लाभप्रद नहीं है और न ही सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उसकी अधिक खरीद करती है।
उम्मीद की जा रही है कि जुलाई-अगस्त के दो महीनों में देश के सभी भागों में मानसून की अच्छी बारिश होगी और खरीफ फसलों की बिजाई की रफ्तार बढ़ जाएगी।