iGrain India - नई दिल्ली (भारती एग्री एप्प)। केन्द्रीय पूल में मौजूद चावल के अधिशेष स्टॉक को घटाने के लिए सरकार विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है। इसके मुख्यत: दो कारण बताए जा रहे हैं।
पहली बात तो यह है कि खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत चावल की बिक्री करने में सरकार को ज्यादा सफलता नहीं मिल सकी और महज 2900 रुपये प्रति क्विंटल का निर्यात मूल्य नियत किए जाने के बावजूद मिलर्स एवं व्यापारियों ने इसकी खरीद करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई।
दूसरा कारण यह है कि खरीफ कालीन धान की खेती आरंभ हो चुकी है और अगले तीन चार महीनों में यानी अक्टूबर 2024 से इसकी सरकारी खरीद पुनः आरंभ हो जाएगी जिससे केन्द्रीय पूल में चावल का स्टॉक आगे निरन्तर बढ़ता जाएगा। चावल के इस अतिरिक्त या अधिशेष स्टॉक के भंडारण एवं रख रखाव पर सरकार को विशाल धन राशि खर्च करनी पड़ती है।
सरकार पहले ओएमएसएस के तहत राज्यों को भी चावल उपलब्ध करवाती थी मगर पिछले साल इसकी प्रक्रिय बंद कर दी गई। इसी तरह एथनॉल निर्माताओं के लिए भी सरकारी चावल की आपूर्ति रोक दी गई।
हालांकि 2023-24 के मार्कटिंग सीजन में चावल की सरकारी खरीद कुछ कम हुई है लेकिन पिछला बकाया स्टॉक मौजूद होने तथा निकासी की गति धीमी रहने से इसकी उपलब्धता घरेलू मांग एवं जरूरत से ज्यादा हो गई। भारत ब्रांड चावल की बिक्री भी उम्मीद के अनुरूप नही हो रही है।
समझा जाता है कि सरकार चावल का स्टॉक घटाने के लिए राज्यों को निश्चित मूल्य पर इसकी बिक्री आरंभ कर सकती है। देश के विभिन्न भागों में मूसलाधार वर्षा होने तथा नदियों में उफान आने आने से बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है।
इससे धान की रोपाई में कठिनाई हो सकती है और बाढ़ ग्रस्त इलाकों में चावल का अतिरिक्त वितरण किया जा सकता है। राज्यों को चावल की जरूरत है और केन्द्रीय पूल से इसके प्राप्त होने से उसे काफी राहत मिल सकती है।