iGrain India - नई दिल्ली । हालांकि आधिकारिक तौर पर दक्षिण- पश्चिम मानसून देश के सभी 36 मौसम उपखंडों में पहुंच चुका है लेकिन अब भी पांच उपखण्ड ऐसे हैं। जहां दीर्घकालीन औसत के सापेक्ष वर्षा कम या बहुत कम हुई है।
इन पांच मौसम उपखंडों में सात राज्य आते हैं जिसमें केरल, उड़ीसा, झारखंड एवं छत्तीसगढ़ भी शामिल है। ध्यान देने की बात है कि छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा धान के अग्रणी उत्पादक राज्यों में शामिल हैं केन्द्रीय पूल में चावल का भारी योगदान देते हैं।
झारखंड में भी धान-चावल का अच्छा उत्पादन होता है। बारिश की कमी से इन सभी राज्यों में धान की रोपाई में बाधा पड़ रही है और वहां इसका क्षेत्रफल घट सकता है। इसमें सबसे बुरा हाल झारखंड का है।
वहां को गोड्डा को छोड़कर अन्य सभी जिलों में सामान्य औसत के मुकाबले मानसून की बारिश या तो कम या बहुत कम हुई है। विभिन्न जिलों में वर्षा की कमी 40 से 80 प्रतिशत तक देखी जा रही है।
इसी तरह उड़ीसा के 30 में से 17 जिलों, छत्तीसगढ़ के 33 में से 20 जिलों तथा केरल के 14 में से 10 जिलों में बारिश काफी कम हुई है।
मौसम विभाग के अनुसार 30 मई को केरल पहुंचने के बाद दक्षिण-पश्चिम मानसून ने 2 जुलाई तक समूचे देश को कवर कर लिया जो नियत तिथि से 6 दिन पूर्व था। देश के अधिकांश भागों में अच्छी बारिश हो रही है जिससे किसानों को खरीफ फसलों का क्षेत्रफल बढ़ाने का अवसर मिल रहा है।
कुछ राज्यों में सामान्य औसत से अधिक वर्षा हुई है। जुलाई के आरंभिक सात दिनों में वर्षा की रफ्तार काफी तेज देखी गई। मौसम विभाग ने चालू माह के दौरान पूर्वोत्तर क्षेत्र के कुछ भागों को छोड़कर देश के शेष हिस्सों में सामान्य औसत से अधिक वर्षा होने की संभावना व्यक्त की है।
उल्लेखनीय है कि जुलाई माह के दौरान देश में सर्वाधिक वर्षा एवं खरीफ फसलों की सबसे ज्यादा बिजाई होती है।
उम्मीद की जा रही है कि जिन सात राज्यों में अभी तक मानसून की वर्षा कम हुई है वहां आगामी समय में इसकी काफी हद तक भरपाई हो जाएगी।
वैसे यह भी सच है कि सर्वोत्तम वर्षा वाले साल में भी देश का दो-चार मौसम उपखण्ड सूखे का संकट झेलने के लिए विवश हो जाता है। इस बार कम वर्षा वाले क्षेत्र का दायरा घटने की उम्मीद है।