iGrain India - भटिंडा । पिंक बॉलवर्म (गुलाबी सूंडी) तथा व्हाइट फ्लाई (सफेद मक्खी) के भयंकर आघात के डर से इस वर्ष पंजाब के किसानों ने कपास के उत्पादन क्षेत्र में भारी कटौती कर दी और पहली बार वहां इसका बिजाई क्षेत्र घटकर 1 लाख हेक्टेयर से नीचे आ गया।
उल्लेखनीय है कि पंजाब में पिछले तीन-चार वर्षों से कपास के रकबे में गिरावट का रूख बना हुआ है। इस बार चारों प्रमुख उत्पादक जिलों में कपास की बिजाई कम क्षेत्रफल में हुई है।
राज्य कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल की तुलना में चालू वर्ष के दौरान पंजाब में कपास का उत्पादन क्षेत्र फाजिल्का जिले में 92 हजार हेक्टेयर से लुढ़ककर 50,341 हेक्टेयर, मनसा जिले में 40,250 हेक्टेयर से घटकर 22,502 हेक्टेयर, भटिंडा में 28 हजार हेक्टेयर से गिरकर 13 हजार हेक्टेयर तथा मुक्तसर जिले में 19 हजार हेक्टेयर से घटकर 9830 हेक्टेयर पर सिमट गया।
चार अन्य जिलों में भी कपास की खेती होती है मगर वहां क्षेत्रफल सीमित रहता है। पंजाब का मालवा संभाग कपास की खेती के लिए प्रसिद्ध रहा है। दरअसल इस बार पंजाब के साथ-साथ राजस्थान एवं हरियाणा में भी कपास के उत्पादन क्षेत्र में भारी गिरावट आई है क्योंकि वहां भी फसल को कीड़ों-रोगों से भारी नुक्सान होता है।
कृषक समुदाय का कहना है कि पंजाब में कपास की खेती अब लाभदायक साबित नहीं हो रही है क्योंकि कीड़ों-रोगों से फसल बुरी तरह प्रभावित होती है और अक्सर किसानों को लागत खर्च निकालना भी मुश्किल हो जाता है।
हालांकि पंजाब में गुलाबी सूंडी कीट के प्रकोप की आशंका पहले से ही बरकरार थी लेकिन कृषि विभाग ने उसे नियंत्रित करने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया।
जब कीट का प्रकोप बहुत ज्यादा बढ़ गया तब फसल नुकसान का जायजा लेने के लिए अधिकारियों एवं विशेषज्ञों का दल गठित किया गया। राजस्थान में तो खतरा इतना बढ़ गया कि किसानों ने कपास के पौधों को उखाड़ना शुरू कर दिया है।