iGrain India - यद्यपि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों से पता चलता है कि चालू वर्ष के दौरान मध्य जुलाई तक दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा दीर्घकालीन औसत के आसपास यानी लगभग सामान्य हुई लेकिन स्थिति का विश्लेषण करने से ज्ञात होता है कि देश में वर्षा का वितरण काफी हद तक असमान रहा।
इसका मतलब यह हुआ कि कई राज्यों में मानसून की वर्षा कम या बहुत कम हुई है। इसमें झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, केरल, पंजाब तथा हरियाणा जैसे महत्वपूर्ण धान उत्पादन प्रान्त भी शामिल है।
दूसरी ओर कुछ राज्यों में अधिशेष बारिश होने की सूचना है जिससे निचले इलाकों में पानी भर गया है। जून में राष्ट्रीय स्तर पर सामान्य से 4 प्रतिशत कम वर्षा हुई मगर जुलाई के प्रथम सप्ताह में 39 प्रतिशत अधिशेष बारिश दर्ज की गई।
इससे मानसून का प्रदर्शन बेहतर रहने की उम्मीद जगी थी लेकिन जुलाई के दूसरे सप्ताह में अधिशेष वर्षा का स्तर घटकर 9 प्रतिशत रह गया। दक्षिण पश्चिम मानसून देश के अधिकांश भागों में सुस्त पड़ गया है।
वैसे मौसम विभाग ने कहा है कि बंगाल की खाड़ी के ऊपर कम दाब का क्षेत्र बन रहा है जिससे आंध्र प्रदेश एवं उड़ीसा सहित कुछ अन्य राज्यों में अच्छी वर्षा हो सकती है।
जिन राज्यों में वर्षा का अभाव है वहां स्वाभाविक रूप से खरीफ फसलों की बिजाई की गति धीमी चल रही है।
देश का लगभग 31 प्रतिशत भाग ऐसा है जहां मानसून की वर्षा सामान्य औसत से कम हुई है। जुलाई को सर्वाधिक वर्षा वाला महीना माना जाता है और मौसम विभाग ने इस माह में सामान्य से अधिक वर्षा होने का अनुमान व्यक्त किया है मगर इसके लिए मानसून का सक्रिय एवं गतिशील होना आवश्यक है ताकि सूखाग्रस्त इलाकों को बारिश की सौगात मिल सके।
मध्य जुलाई तक राष्ट्रीय स्तर पर खरीफ फसलों का कुल बिजाई क्षेत्र 575 लाख हेक्टेयर से कुछ ऊपर पहुंच गया जो पिछले साल की समान अवधि के बिजाई क्षेत्र 521 लाख हेक्टेयर से करीब 10 प्रतिशत ज्यादा है।
ध्यान देने की बात है कि गत वर्ष अल नीनो मौसम चक्र के प्रभाव एवं प्रकोप से मानसून शिथिल पड़ गया था इसलिए खरीफ फसलों की बिजाई की रफ्तार धीमी रही थी।
इस बार अभी तक मानसून लगभग सामान्य है क्योंकि न तो अल नीनो और न ही ला नीना मौसम चक्र सक्रिय हुआ है। न्यूट्रल फेज में मानसून को आगे बढ़ने का अच्छा अवसर मिल जाता है।
जुलाई-अगस्त में खरीफ फसलों की सर्वाधिक बिजाई होती है। 15 जुलाई तक कुल सामान्य औसत क्षेत्रफल के 50 प्रतिशत से अधिक भाग में फसलों की बिजाई होना अच्छी बात है लेकिन शेष भाग में बिजाई की गति कमजोर नहीं पड़नी चाहिए। देश को बेहतर उत्पादन की सख्त जरूरत है।