iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार ने एक तरफ वर्ष 2025-26 के सीजन तक पेट्रोल में एथनॉल के मिश्रण का स्तर बढ़ाकर 20 प्रतिशत पर पहुंचाने का महत्वकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है जबकि दूसरी ओर गन्ना से निर्मित शीरा तथा गन्ना जूस से एथनॉल के निर्माण की मात्रा सीमित कर दी है।
इसके फलस्वरुप एथनॉल के सभी अतिरिक्त उत्पादन के लिए खाद्यान्न और खासकर मक्का तथा टूटे चावल (ब्रोकन राइस) का उपयोग बढ़ाने की आवश्यकता पड़ेगी।
एथनॉल निर्माण में मक्का का उपयोग तेजी से बढ़ने के आसार हैं जबकि घरेलू प्रभाग में इसकी उपलब्धता अपेक्षाकृत बढ़ोत्तरी नहीं हुई है और विदेशों से पर्याप्त मात्रा में आयात की अनुमति दी गई तो एथनॉल निर्माताओं को अपनी बढ़ती जरूरतों के अनुरूप कच्चा माल हासिल करने में भारी कठिनाई हो सकती है।
ध्यान देने की बात है कि अब तक देश में उत्पादित मक्का के 60 प्रतिशत भाग का उपयोग पॉल्ट्री फीड / पशु आहार निर्माण उद्योग में होता रहा है।
इसके अलावा स्टार्च निर्माण तथा प्रत्यक्ष खाद्य उद्देश्य में भी मक्का का भारी इस्तेमाल होता है और साथ ही साथ देश से इसका निर्यात भी किया जाता है।
एथनॉल निर्माण में विशाल पैमाने पर मक्का (डी डी जी एस) का प्रयोग होने लगा है जबकि फीड उद्योग में इसकी खपत कम होती है क्योंकि इसमें मायकोटॉक्सिन का अंश ऊंचा होता है।
गंधक (सल्फर) की मात्रा ज्यादा रहती है और इसकी क्वालिटी भी अनियमित होती है। मक्का डीडीजीएस कई बार पशुओं / पक्षियों के लिए पाचन योग्य नहीं होता है और इसलिए मुर्गी पालन उद्योग में इसका उपयोग कम होने लगा है।
मक्का डीडीजीएस की आपूर्ति एवं उपलब्धता काफी बढ़ जाने से कीमतों में नरमी आ गई है। कुछ आपूर्तिकर्ता इसे जान बूझकर सोया डीओसी में मिला देते हैं जिससे न केवल आर्थिक नुकसान होता है बल्कि पशुओ का प्रदर्शन की प्रभावित होता है।
मायकोटोक्सिन एवं सल्फर का अंश बढ़ जाने से सोयामील भी पशुओं के लिए खतरनाक हो जाता है। ध्यान देने की बात है कि मक्का डीडी जीएस में मौजूद अमीनों अम्ल का प्रोफ़ाइल सोयाबीन मील से बहुत भिन्न होता है जो पशुओं के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है।