iGrain India - दरभंगा । हालांकि मखाना के सबसे प्रमुख उत्पादक प्रान्त- बिहार में आमतौर पर जून से ही नए माल की आवक शुरू हो जाती है और जुलाई-अगस्त में आपूर्ति की रफ्तार काफी बढ़ जाती है लेकिन इस बार उत्पादक क्षेत्रों में बाढ़-वर्षा के कारण इसका नया माल अत्यन्त सीमित मात्रा में आ रहा है जबकि पिछला स्टॉक नगण्य होने तथा त्यौहारी सीजन के लिए स्टॉकिस्टों एवं दिअवारी व्यापारियों की लिवाली जारी रहने सी मखाने का भाव ऊंचे स्तर पर मजबूत बना हुआ है।
आगामी दिनों में रक्षा बंधन एवं जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा। इस अवसर पर मखाने की मांग एवं खपत बढ़ने का प्रचलन रहा है।
दरअसल बिहार में सीतामढ़ी, मधुबनी, दरभंगा, खगड़िया, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया तथा कटिहार और पश्चिम बंगाल के मालदा सहित कुछ अन्य जिलों में मखाना का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है।
इनमें से कई जिलों में बाढ़ का प्रकोप देखा जा रहा है क्योंकि कोसी, गंडक, कमलाबलान तथा बागमती ऐसी नदियां उफान पर है।
मालूम हो कि मखाना पानी के अंदर की फसल है और नीचे सतह पर इसे बुहारकर ऊपर लाया जाता है। फिर इसे धूप में सुखाकर छिलके से दाने को अलग किया जाता है।
बाढ़ ग्रस्त इलाकों में इसकी प्रक्रिया काफी धीमी गति से चल रही है और जब तक पानी नहीं उतरता है तब तक उत्पादन की गति सुस्त रह सकती है।
गुलाब बाग़ (पूर्णिया), दरभंगा एवं फारविस गंज सहित अन्य मंडियों में नए माल की सीमित आवक के बीच मांग मजबूत होने से मखाना का भाव ऊंचे स्तर पर चल रहा है।
स्टॉकिस्टों एवं उत्पादकों के पास इसका नगण्य स्टॉक बचा हुआ है और प्रमुख खपत केन्द्रों में भी इसकी बहुत कम मात्रा बची हुई है।
इसके फलस्वरूप उत्पादक मंडियों में जो माल आ रहा है वह हाथों हाथ बिक रहा है। बिहार की प्रमुख मंडियों में पिछले एक-डेढ़ महीने के दौरान मखाना के दाम में करीब 150 रुपए प्रति किलो का इजाफा हो चुका है।
अच्छी क्वालिटी के मखाने का अभाव देखा जा रहा है जयपुर, दिल्ली, आगरा, कानपुर, मेरठ, सहारनपुर, लखनऊ तथा बरेली आदि में मखाना का स्टॉक नहीं या नगण्य है।
नए माल की जोरदार आवक शुरू होने में एक माह का समय लग सकता है और अब तक मखाने के दाम में यदि कुछ और इजाफा हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।