iGrain India - हैदराबाद । राष्ट्रीय स्तर पर किसानों के एक समूह- भारतीय फार्मर नेटवर्क (बीएफएन) ने प्रधानमंत्री से गैर बासमती धान की ऐसी उन्नत एवं किस्मों की खेती को बढ़ावा देने हेतु आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया है जो हर्बीसाइड को सहने की क्षमता से युक्त हो।
एचटी बासमती धान के विकास में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा किए गए कार्यों एवं प्रयासों की सराहना करते हुए नेटवर्क ने कहा है कि इसका लाभ अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाने की कोशिश होनी चाहिए।
भारत दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक तथा दूसरा सबसे प्रमुख उत्पादक देश है। यहां बासमती और गैर बासमती- दोनों किस्मों के चावल का विशाल उत्पादन होता है।
इसमें ग़ैर बासमती (सामान्य) चावल की भागीदारी बहुत अधिक रहती है और देश के सभी राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में इसका उत्पादन होता है। भारत से विशाल मात्रा में विदेशों में इसका निर्यात किया जाता है।
प्रधानमंत्री को भेजे एक पत्र में बीएफएन ने कहा है कि यद्यपि धान-चावल के उत्पादन में हाल के दशकों के दौरान देश ने अच्छी प्रगति की है लेकिन इस मोर्च पर कुछ चुनौतियां अब भी बरकरार है।
इसमें खर-पतवार का नियंत्रण भी शामिल है जो धान की फसल की उपज दर तथा किसानों के लाभ के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा बना हुआ है।
धान की ऐसी किस्मों के विकास को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है जिसमें खर- पतवार से अपना बचाव करने की क्षमता मौजूद रहे।
चूंकि धान की फसल के लिए पानी की सर्वाधिक आवश्यकता पड़ती है इसलिए नमी युक्त खेतों में जंगली खर-पतवार बढ़ी तेजी से पनपते और फैलते हैं तथा खेतों की मिटटी की उर्वरा शक्ति को शोषित कर लेते हैं।
इससे फसल की सुरक्षा करना आवश्यक है। धान की फसल के लिए अक्सर पानी का अभाव हो जाता है और साथ ही साथ इसकी खेती के लिए श्रमिकों की भारी संख्या की जरूरत पड़ती है।
यदि एचटी गैर बासमती धान की नई-नई प्रजातियों का विकास तथा उपयोग किया जाए तो इन समस्याओं से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है।
इससे धान की औसत उपज दर एवं कुल पैदावार बढ़ाने में सहायता मिलेगी और चावल का उत्पादन तेजी से बढ़ेगा। तब सरकार को चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।