iGrain India - नई दिल्ली । तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद खाद्य महंगाई दर में अपेक्षित गिरावट नहीं आ रही है जबकि त्यौहारी सीजन में इसकी कीमतों में और भी तेजी आने की संभावना है।
दिलचस्प तथ्य यह है कि ऊंची कीमतों के बावजूद खाद्य उत्पादों में मांग मजबूत बनी हुई है जिससे भाव नीचे नहीं आ रहा है।
दरअसल पहले ही चावल, गेहूं, दाल, चीनी एवं तेल जैसे आवश्यक उपभोक्ता उत्पादों का भाव उछलकर इतने ऊंचे स्तर पर पहुंच गया कि अब इसमें थोड़ी-बहुत नरमी आने से उपभक्ताओं को कोई खास राहत नहीं मिल रही है। दूसरी ओर सरकार की चिंता लगातार बढ़ती जा रही है।
हैरानी की बात यह है कि खाद्य महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार अपनी ओर से तमाम उपाय लागू कर रही है।
इसमें आयात नीति को उदार बनाना, निर्यात पर प्रतिबंध लागू करना तथा कुछ उत्पादों पर भंडारण सीमा लागू करना आदि शामिल है मगर इसका सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आ रहा है।
खर्च, सेवा शुल्क एवं उत्पादन लागत सभी पर इसका प्रभाव पड़ रहा है। खाद्य महंगाई का जोखिम जितना ज्यादा बढ़ेगा उतना ही सरकार को दबाव महसूस होगा।
रिजर्व बैंक भी खाद्य महंगाई से बेचैन है। कहा जा रहा है कि खाद्य उत्पादों की कीमतों में बढ़ोत्तरी का स्रोत रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के दायरे से बाहर है लेकिन जब खाद्य महंगाई के कारण अन्य क्षेत्रों में मुद्रास्फीति का फैलाव होता है तब उसे नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति के तहत जरुरी कदम उठाने की आवश्यकता पड़ती है।
कीमतों में स्थिरता बनाए रखने के लिए और आम लोगों में विश्वास बरकरार रखने के लिए रिजर्व बैंक को भी मशक्क्त करनी पड़ती है।
चावल, गेहूं, चीनी, दाल, तेल और मसाले दैनिक उपयोग के आवश्यक खाद्य उत्पाद हैं जिसकी समुचित आपूर्ति एवं उपलब्धता सुनिश्चित करना और कीमतों को नियंत्रण में रखना सरकार का दायित्व है। इसके लिए आवश्यक प्रयास किए जा रहे है।