iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार देश में तिलहन फसलों का उत्पादन बढ़ाने तथा विदेशों से खाद्य तेलों का आयात घटाने की भरपूर चेष्टा कर रही है और अब एक बार फिर इसके लिए योजना बनाकर उस पर अमल करने का प्रयास कर रही है।
उल्लेखनीय है कि खाद्य तेलों की केवल 44 प्रतिशत घरेलू मांग एवं जरूरत को स्वदेशी उत्पादन से पूरा किया जाता है जबकि शेष 56 प्रतिशत खपत की पूर्ति के लिए विदेशों से आयात पर निर्भर रहना पड़ता है।
मांग एवं आपूर्ति के बीच मौजूद इस विशाल अंतर को पाटना आसान काम नहीं है लेकिन इसके लिए जोरदार प्रयास अवश्य होना चाहिए।
केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने उत्पादन बढ़ाने का जो प्लान तैयार किया है उसमें तिलहनों की औसत उपज दर तथा इसके बिजाई क्षेत्र में बढ़ोत्तरी करना मुख्य रूप से शामिल है।
इसके साथ-साथ खाद्य तेलों पर आयात शुल्क को युक्ति संगत बनाना और आयात पर नियंत्रण रखना भी सरकारी प्लान में शामिल है ताकि विदेशों से होने वाले सस्ते आयात से स्वदेशी उत्पादन प्रभावित हो सके।
सरकार चाहती है की धान तथा आलू की फसल कटने के बाद जब खेत खाली हो जाए तब किसान उसमें बड़े पैमाने पर तिलहन फसलों की खेती का प्रयास करे।
लेकिन इसके लिए किसानों को समुचित प्रोत्साहन दिए जाने की सख्त आवश्यकता है। सरकार किसानों को निश्चित मूल्य दिलाने का प्रबंध कर रही है।
प्रत्येक साल खरीफ एवं रबी तिलहन फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की जाती है लेकिन इस समर्थन मूल्य पर किसानों से तिलहनों की खरीद बहुत कम होती है और इसलिए उत्पादकों को खुले बाजार में औने-पौने दाम पर अपना उत्पाद बेचने के लिए विवश होना पड़ता है।
सरकार का इरादा किसानों से एमएसपी पर सरसों, सोयाबीन एवं मूंगफली की अधिक से अधिक खरीद करना है। केन्द्रीय कृषि मंत्री पहले ही इसका वादा कर चुके है।
खाद्य तेलों का आयात नए-नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच रहा है जिस पर अत्यन्त विशाल धनराशि खर्च होती है और भारतीय किसानों को भी नुकसान होता है।
खाद्य तेलों के आयात को नियंत्रित किया जाना आवश्यक है। भारत दुनिया में इसका सबसे प्रमुख आयातक देश बना हुआ है जहां पाम तेल, सोयाबीन तेल एवं सूरजमुखी तेल की विशाल मात्रा का आयात प्रत्येक वर्ष किया जाता है।