iGrain India - नई दिल्ली । पिछले साल गेहूं की सरकारी खरीद में जबरदस्त गिरावट आ गई थी लेकिन धान-चावल की अच्छी खरीद ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून को प्रभावित होने से बचा लिया।
इस बार गेहूं की खरीद में कुछ वृद्धि हुई है मगर चावल की खरीद अपेक्षित स्तर तक पहुंचने की संभावना कम है। इस बार दक्षिण-पश्चिम मानसून "हां-ना" के फेर में फंसा हुआ लगता है।
19 जून तक सुस्त रहने के बाद वह सक्रिय हुआ और पिछले करीब एक पखवाड़े के दौरान देश के अधिकांश भागों में अच्छी वर्षा हो गई। एक समय वर्षा की कमी 57 प्रतिशत तक पहुंच गई थी जो अब घटकर 16 प्रतिशत से भी नीचे आ गई है।
सबका ध्यान जुलाई-अगस्त पर टिका हुआ है जब देश में सबसे ज्यादा वर्षा एवं खरीफ फसलों की सबसे अधिक बिजाई होती है। जुलाई की शुरुआत तो मानसूनी वर्षा की दृष्टि से अच्छी देखी जा रही है लेकिन आगे अल नीनो मौसम चक्र का खतरा बरकरार है।
ध्यान देने की बात है कि कुछ सप्ताह पूर्व तक सरकार यह मानकर चल रही थी कि इस बार गेहूं का रिकॉर्ड एवं चावल का शानदार उत्पादन हुआ है लेकिन जब मंडियों में आपूर्ति का प्रवाह सूखने लगा और कीमतों में तेजी आने लगी तब उसे वास्तविकता का अहसास हुआ और उसने आनन -फानन में कदम उठाना शुरू कर दिया।
पहले गेहूं पर भंडारण सीमा लागू की गई और फिर केन्द्रीय पूल से गेहूं तथा चावल बेचने के लिए खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) को आरंभ किया गया।
दिलचस्प तथ्य यह है कि 31 मई को खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा था कि बाजार में गेहूं की अच्छी आपूर्ति हो रही है और खुले बाजार में सरकारी गेहूं उतारने की कोई जरूरत नहीं है।
लेकिन इसके कुछ ही दिनों के बाद केन्द्रीय पूल से 15 लाख टन गेहूं बेचने की घोषणा की गई और फिर 28 जून से ई-नीलामी आरंभ कर दी गई। अब चावल की बिक्री भी शुरू हो गई है।
ऐसा लगता है कि सरकार काफी सतर्क होकर बाजार को नियंत्रित करना चाहती है क्योंकि उसे स्टॉक के बारे में सब पता है। जब आपूर्ति के ऑफ सीजन में गेहूं का अभाव उत्पन्न होने पर कीमतों में तेजी का माहौल बनेगा तब सरकार को बाजार को नियंत्रित करने में कठिनाई हो सकती है।