iGrain India - नई दिल्ली । बेशक एक सप्ताह की देरी से आने तथा शुरुआती 10-15 दिनों तक सुस्त रहने के बाद 20-21 जून से दक्षिण-पश्चिम मानसून की सक्रियता बढ़ी और 2 जुलाई तक सैद्धांतिक रूप से यह समूचे देश में पहुंच गया लेकिन एक तो अनेक मौसम उपखंडों में सामान्य औसत से कम बारिश हुई है और दूसरे, अल नीनो मौसम चक्र के कारण आगामी समय में इसकी सक्रियता घटने की आशंका है।
मालूम हो कि मानसून सीजन के दौरान ही खरीफ फसलों की बिजाई एवं प्रगति होती है और इसके समाप्त होते ही उन फसलों की कटाई-तैयारी आरंभ हो जाती है।
खरीफ सीजन में धान, अरहर (तुवर), उड़द, मूंग, मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी, सोयाबीन, मूंगफली, कपास एवं गन्ना आदि फसलों की खेती बड़े पैमाने पर होती है।
चूंकि देश का अधिकांश कृषि क्षेत्र वर्षा पर आश्रित है इसलिए खरीफ फसलों के लिए मानसून की बारिश अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। चालू वर्ष के लिए तो इसकी आवश्यकता और भी बढ़ गई है क्योंकि पिछले खरीफ सीजन में अपेक्षित उत्पादन नहीं हो पाया था।
सरकार के पास खाद्यान्न का सीमित स्टॉक मौजूद है इसलिए घरेलू बाजार में आपूर्ति एवं उपलब्धता की स्थिति को सुगम बनाए रखने तथा कीमतों को बढ़ने से रोकने के लिए उसे सटीक, सामयिक एवं व्यावहारिक रणनीति बनानी होगी।
आमतौर पर त्यौहारी सीजन में खाद्य उत्पादों की मांग और खपत बढ़ जाती है जिससे कीमतों में तेजी आने की संभावना रहती है। अगले महीने (अगस्त) से त्यौहारी सीजन शुरू हो जाएगा जो कमोबेश अक्टूबर के अंत या नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक जारी रहेगा। उस समय अनेक जिंसों की आपूर्ति का ऑफ सीजन रहता है लेकिन खरीफ फसलों की आवक अक्टूबर में शुरू हो जाती है।
केन्द्रीय पूल में गेहूं और चावल का स्टॉक केवल घरेलू मांग एवं खपत को पूरा करने लायक है इसलिए सरकार को इसके प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना होगा।
गेहूं का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊंचा चल रहा है जबकि सबसे सामान्य श्रेणी के आटा का खुदरा मूल्य भी 30 रुपए प्रति किलो है।
चावल की कीमतों में भी हाल के दिनों में इजाफा हुआ है जिससे आम उपभोक्ताओं की परेशानी बढ़ी है। सरकार को थोक विक्रेताओं के साथ-साथ खुदरा कारोबारियों पर भी नजर रखने की आवश्यकता है।