iGrain India - मुम्बई । अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय हल्दी की मांग मजबूत बनी हुई है लेकिन घरेलू बाजार के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है। वैसे हाल के दिनों में घरेलू प्रभाग में कारोबार की स्थिति कुछ सुधरी है लेकिन फिर भी सामान्य स्तर पर नहीं पहुंच पाई है।
उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक 2021-22 की तुलना में 2022-23 वित्त वर्ष के दौरान हल्दी का कुल निर्यात 11 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी के साथ 1,70,085 टन पर पहुंच गया। व्यापार विश्लेषकों के अनुसार अगले कुछ महीनों तक हल्दी का भाव ऊंचा एवं तेज रहने की संभावना है।
यदि कॉमोडिटी एक्सचेंज में इसका वायदा मूल्य बढ़कर 10,380 रुपए प्रति क्विंटल से ऊपर पहुंचता है तो इससे तेजी की धारणा को और बल मिल सकता है। कीमतों में तेजी आने से हल्दी की खेती में किसानों की दिलचस्पी बढ़ने के आसार हैं।
हालांकि पहले मानसून के सुस्त रहने तथा बाजार भाव कमजोर होने से हल्दी का उत्पादन क्षेत्र पिछले साल की तुलना में 20-25 प्रतिशत घटने की आशंका व्यक्त की जा रही थी।
माना जा रहा था कि महाराष्ट्र के सांगली एवं कोल्हापुर जैसे जिलों में किसान हल्दी के बजाए गन्ना, अरहर (तुवर) एवं सोयाबीन की खेती को प्राथमिकता दे सकते हैं।
पिछले तीन-चार वर्षों से हल्दी के दाम में स्थिरता का माहौल रहने से किसानों का आकर्षण घटने लगा था लेकिन अब बाजार काफी ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है। इससे उत्पादकों के रुख में परिवर्तन होने की उम्मीद है।
व्यापार विश्लेषकों के मुताबिक बारिश का अभाव होने के कारण हल्दी का उत्पादन क्षेत्र पिछले साल के मुकाबले इस बार कर्नाटक में करीब 30 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 20 से 30 प्रतिशत पीछे चल रहा है।
लेकिन चूंकि हल्दी की बिजाई जुलाई के अंत तक हो सकती है और अब दोनों राज्यों में बारिश भी होने लगी है इसलिए किसान इस महत्वपूर्ण मसाले की खेती में उत्साह दिखा सकते हैं।
तमिलनाडु के पश्चिमी भाग में लगभग 90 प्रतिशत परम्परागत उत्पादक हल्दी की खेती में दिलचस्पी दिखा रहे हैं जिससे प्रतीत होता है कि वहां इसके उत्पादन क्षेत्र में 5-10 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट नहीं आएगी।
तमिलनाडु में औसत 13-14 लाख बोरी हल्दी का वार्षिक उत्पादन होता है जबकि इस बार यह 12.50-13.00 लाख बोरी पर सिमट सकता है।