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भारत में प्रतिबंध के बाद अमरीका- कनाडा में चावल का स्टॉक करने की होड़

प्रकाशित 24/07/2023, 12:37 pm
भारत में प्रतिबंध के बाद अमरीका- कनाडा में चावल का स्टॉक करने की होड़
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iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार द्वारा 20 जुलाई 2023 को सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद अमरीका तथा कनाडा में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों (एनआरआई) में चावल का स्टॉक बनाने की होड़ मची हुई है।

विदेशों में चावल का दाम बढ़ने लगा है। प्राप्त सूचना के अनुसार अमरीका में मिसौरी प्रान्त के सेंट लुइस शहर में आर्गेनिक चावल का दाम बढ़कर 1 डॉलर प्रति एल बी (पौंड) पर पहुंच गया है।

हालांकि वहां लोग अब चावल के बजाए मिलेट्स के उपयोग को प्राथमिकता दे रहे हैं लेकिन कुछ ऐसे व्यंजन होते हैं जिसमें चावल का इस्तेमाल आवश्यक होता है।

सामान्यतः अमरीका में चावल की खपत कम होती है लेकिन कुछ ऐसे व्यंजन होते हैं जिसमें चावल का इस्तेमाल आवश्यक होता है। सामान्यतः अमरीका में चावल की खपत कम होती है लेकिन विदेशी और एशियाई मूल के लोग इसका अच्छा इस्तेमाल करते हैं। सामान्य श्रेणी के गैर बासमती चावल का भाव ऑर्गेनिक चावल से काफी नीचे रहता है।

पिछले साल जब भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था तब अमरीकी एनआरआई ने कनाडाई गेहूं का इस्तेमाल शुरू कर दिया था।

दिलचस्प तथ्य यह है कि अमरीका में भारतीय सफेद चावल का भाव उछलकर 50 डॉलर प्रति 20 एल बी की ऊंचाई पर पहुंच गया है तो आर्गेनिक चावल के दाम से दोगुना अधिक है। हालांकि लाल एवं माटा तथा इस तरह का अन्य चावल स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है लेकिन वहां कोई इसे पसंद नहीं करता है। 

लेकिन सफेद गैर बासमती चावल की खरीद के प्रति एनआरआई का आकर्षण बहुत बढ़ गया है। ये लोग भारतीय चावल को काफी पसंद करते हैं। भारत में निर्यात प्रतिबंध की घोषणा होने के बाद हजारों एनआरआई अमरीका और कनाडा में ग्रोसरी स्टोर्स एवं रिटेल चेन के आउटलेट पर सफेद चावल खरीदने के लिए पहुंच गए।

खासकर दक्षिण भारत के लोगों द्वारा वहां इस चावल की भारी खरीद की जा रही है जिससे कई दुकानों में इसका स्टॉक खत्म हो गया है। मालूम हो कि दक्षिण भारत के एनआरआई सोना मसूरी चावल के बड़े शौकीन होते हैं जिन्हें भारत से निर्यात पर पाबंदी लगने की सूचना ने काफी चिंतित कर दिया है।

इधर भारतीय निर्यातकों का कहना है कि केन्द्र सरकार ने सफेद चावल पर निर्यात प्रतिबंध लगाने से पूर्व संभवतः उन लोगों के बारे में नहीं सोचा जो विदेशों में रह रहे हैं। वे लोग ऊंची कीमत वाले सफेद चावल खरीदते हैं जिसका दाम 600 डॉलर प्रति टन से भी ऊंचा रहता है। सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।

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