iGrain India - नई दिल्ली । यद्यपि भारत सरकार आंतरिक खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने तथा कीमतों में तेजी पर अंकुश लगाने के लिए गेहूं एवं चावल के निर्यात पर अपनी रणनीति के तहत प्रतिबंध लगा रही है लेकिन आयातक देशों द्वारा इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है।
अफ्रीका और एशिया के जो देश भारतीय चावल पर ही मुख्य रूप से आश्रित थे उनमें काफी असंतोष उत्पन्न हो गया है। हालांकि निर्यात प्रतिबंध में राहत का एक प्रावधान रखा गया है कि खाद्य सुरक्षा की जरूरतों को पूरा करने के लिए यदि कोई देश (उसकी सरकार) लिखित रूप से भारत सरकार से सफेद चावल के निर्यात की अनुमति देने का अनुरोध करता है तो उस पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया जाएगा और वहां चावल के शिपमेंट की स्वीकृति दी जा सकती है मगर इन देशों को लगता है कि यह प्रक्रिया काफी लम्बी और जटिल हो सकती है।
सबसे महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया यह सामने आई है कि वैश्विक बाजार में एक स्थायी एवं विश्वसनीय चावल निर्यातक देश के रूप में भारत की साख को सरकारी निर्णय से धक्का लग सकता है।
इसका कारण यह है कि भारत सरकार किसी पूर्व सूचना के बगैर ही गेहूं तथा चावल के निर्यात पर रोक लगाने का अचानक निर्णय ले रही है जिससे उन आयातकों को विशेष परेशानी होती है जो चावल आयात के लिए प्लान बना रहे होते हैं।
इतना ही नहीं बल्कि भारतीय निर्यातक भी कई बार असमंजस में फंस जाते हैं। अगर भारत सरकार निर्यात पर रोक लगाने के बारे में पहले ही कुछ संकेत या सूचना दे दे तो आयातकों- निर्यातकों को संभलने का अवसर मिल सकता है।
भारत पिछले एक दशक से दुनिया में चावल का सबसे प्रमुख निर्यातक देश बना हुआ है और भारतीय निर्यातकों ने बड़ी मेहनत एवं लगन से इतना विशाल बाजार पाया है। उसे एक झटके से खत्म करना ठीक नहीं है।
यह सही है कि इस बार भारत के साथ भी कुछ विवशता है और शायद चावल के निर्यात पर रोक लगाना आवश्यक भी हो गया था लेकिन इसका कुछ ऐसा वैकल्पिक प्रबंध होना चाहिए था जिससे आयातकों- निर्यातकों को न्यूनतम कठिनाई का सामना करना पड़ता।
इससे पूर्व सितम्बर में सरकार ने कच्चे (सफेद) एवं स्टीम चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लगाया था लेकिन वास्तविक शिपमेंट पर इसका कोई असर नहीं पड़ा था। 100 प्रतिशत टूटे चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा हुआ है। वैसे सेला चावल एवं बासमती चावल का निर्यात अभी पूरी तरह खुला हुआ है।