iGrain India - नई दिल्ली । खाद्य, उपभोक्ता मामले एवं सार्वजनिक वितरण पर संसद की स्थायी समिति द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि सरकार को विभिन्न सार्वजनिक वितरण कार्यक्रमों के लाभार्थियों को चावल एवं गेहूं के साथ-साथ मोटे अनाजों को प्राप्त करने का विकल्प भी दिया जाना चाहिए लेकिन कुल मात्रा निर्धारित सीमा के अंदर ही हो।
रिपोर्ट में कहा गया है कि केन्द्र सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) सहित अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत चावल एवं गेहूं के अलावा मिलेट्स के वितरण की संभावना का पता लगाना चाहिए जिसमें समेकित बाल विकास सेवा एवं प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण स्कीम भी शामिल है।
अधिक से अधिक राज्यों में मिलेट्स को अपनाया जा सकता है। इससे चावल एवं गेहूं के स्टॉक पर दबाव कुछ घट जाएगा जिससे इसकी कीमतों में तेजी पर अंकुश लग सकता है।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 2018-19 से लेकर 2022-23 के वित्त वर्ष के दौरान मिलेट्स का घरेलू उत्पादन 137.10 लाख टन से 16 प्रतिशत बढ़कर 159 लाख टन पर पहुंचा जबकि गैर मिलेट्स संवर्ग के मोटे अनाजों जैसे- मक्का एवं जौ का उत्पादन वित्त वर्ष 2018-19 के 293.40 लाख टन से 25.46 प्रतिशत उछलकर 368.10 लाख टन की ऊंचाई पर पहुंच गया।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मोटे अनाजों जैसे ज्वार, बाजरा, रागी एवं मक्का की सरकारी खरीद वित्त वर्ष 2016-17 एवं 2022-23 के बीच नौ गुणा बढ़ी।
इसके साथ ही साथ सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से मोटे अनाजों के वितरण को पहले 2017-18 में केवल दो राज्यों- हरियाणा एवं महाराष्ट्र तक सीमित रखा गया था मगर अब इसकी संख्या बढ़कर नौ हो गई है जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, उड़ीसा, उत्तराखंड तथा तमिलनाडु शामिल है। बिहार सहित देश के अन्य राज्यों / केन्द्र शासित प्रदेशों में भी इसका वितरण शुरू किया जाना चाहिए।