iGrain India - नई दिल्ली । पहले से ही चावल का दाम बढ़ाने की फ़िराक में बैठे थाईलैंड एवं वियतनाम के निर्यातकों को उस समय अपने मकसद में कामयाबी मिल गई जब भारत ने 20 जुलाई 2023 को गैर बासमती संवर्ग के सफेद (कच्चे) चावल के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी। मालूम हो कि एशिया एवं अफ्रीका महाद्वीप में चावल करोड़ों लोगों का मुख्य खाद्य आहार है।
चावल का वैश्विक बाजार भाव तेजी से उछलकर पिछले करीब 15 वर्षों के शीर्ष स्तर पर पहुंच गया है जिससे गरीब वर्ग के उपभोक्ताओं को भारी कठिनाई हो रही है।
उल्लेखनीय है कि कुछ देशों में मौसम की प्रतिकूलता चरण पर पहुंचने तथा रूस- यूक्रेन के बीच युद्ध जारी रहने से गेहूं सहित अन्य अनाजों का वैश्विक बाजार मूल्य पहले से ही ऊंचा एवं तेज चल रहा है जबकि अब चावल का तेजी से उछलता भाव इसकी तपिश (गर्माहट) को और भी बढ़ा रहा है। इससे खाद्यान्न का दाम आगे भी तेज रहने की संभावना है।
चालू सप्ताह के दौरान थाईलैंड के 5 प्रतिशत टूटे चावल का निर्यात ऑफर मूल्य उछलकर 648 डॉलर प्रति टन की उंचाई पर पहुंच गया। वहां शुष्क मौसम से धान की फसल पर खतरा बना हुआ है।
भारत दुनिया में चावल का सबसे प्रमुख निर्यातक देश है और वैश्विक निर्यात बाजार में इसकी भागीदारी 40 प्रतिशत के करीब रहती है। भारत की वजह से वैश्विक बाजार में चावल का भाव काफी हद तक स्थिर रहता था।
क्योंकि इसका उत्पाद काफी सस्ते दाम पर उपलब्ध था और थाईलैंड तथा वियतनाम को हमेशा डर लगा रहता था कि यदि इसमें निर्यात ऑफर मूल्य ज्यादा बढ़ाया तो भारत से मुकाबला करना कठिन हो जाएगा।
लेकिन जब भारत सरकार ने सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया तब इन देशों का डर भी समाप्त हो गया और वहां चावल के दाम में भारी उछाल आ गया।
एक विशेषज्ञ के मुताबिक चावल की वैश्विक मांग एवं आपूर्ति के बीच भारी अंतर उत्पन्न हो गया है। यदि छोटे निर्यातक देश चावल का शिपमेंट रोकता तो भारत उसकी कमी को पूरा कर सकता था क्योंकि इसके पास क्षमता है लेकिन जब भारत ने ही निर्यात बंद कर दिया तो उसे कौन पूरा करेगा।
थाइलैंड में दूसरे सीजन के दौरान धान की खेती करने से किसानों को मना किया जा रहा है और वियतनाम की अपनी सीमा है। भारत का चावल 140 देशों तक पहुंच रहा था।