iGrain India - बैंकॉक । भारत से गैर बासमती संवर्ग के सफेद चावल का निर्यात प्रतिबंधित होने का सबसे अधिक फायदा थाईलैंड को हो रहा है जहां पहले ही 5 प्रतिशत टूटे चावल निर्यात ऑफर मूल्य उछलकर 648 डॉलर प्रति टन की उंचाई पर पहुंच चुका है।
इससे एशिया एवं अफ्रीका महाद्वीप के प्रमुख आयातक देशों की कठिनाई बढ़ने लगी है। वियतनाम के निर्यातकों ने भी चावल का दाम बढ़ाना शुरू कर दिया है। वैश्विक खाद्य बाजार में तेजी का माहौल बनने लगा है।
दरअसल भारत दुनिया में चावल का सबसे प्रमुख निर्यातक देश है और वैश्विक बाजार में 40 प्रतिशत की भागीदारी रखता है। भारत से निर्यात ठप्प पड़ते ही थाईलैंड के निर्यातकों ने अपने अनाज का भाव मनमाने ढंग से बढ़ाना शुरू कर दिया।
भारत से काफी पीछे रहकर थाईलैंड चावल का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है जबकि वियतनाम उससे कुछ पीछे रहकर तीसरे नम्बर पर है। थाईलैंड के साथ भी आगे गंभीर समस्या उत्पन्न होने की आशंका है क्योंकि अल नीनो मौसम चक्र के प्रभाव से वहां बारिश कम होने पर धान की दूसरी फसल प्रभावित हो सकती है।
थाई सरकार पानी की बचत को ध्यान में रखकर किसानों को दूसरे सीजन की खेती नहीं नगण्य करने की सलाह दे रही है। यदि वहां से चावल का निर्यात जरूरत से ज्यादा बढ़ाने का प्रयास किया गया तो उसके घरेलू बाजार में आपूर्ति एवं उपलब्धता के अभाव का संकट उत्पन्न हो सकता है।
गेहूं फसल की हालत अनेक प्रमुख निर्यातक देशों में कमजोर रहने से इस बार चावल का महत्व और भी बढ़ गया है। एशिया तथा अफ्रीका के जो देश पहले भारत पर आश्रित थे उन्हें अब थाईलैंड अथवा वियतनाम की ओर जाना पड़ रहा है।
पाकिस्तान भी अपने चावल का निर्यात बढ़ाने का प्रयास कर रहा है अगर वहां इसका अधिशेष स्टॉक बहुत कम है। उसका ध्यान अगली फसल पर है।
हालंकि सफेद चावल में निर्यात पर लगे प्रतिबंध को वापस लेने के लिए भारत सरकार पर चौतरफा दबाव डाला जा रहा है लेकिन सरकार झुकने वाली नहीं है।
जब उसे बेहतर घरेलू उत्पादन का पक्का भरोसा हो जाएगा। और कीमतों में नरमी आने का संकेत मिलने लगेगा तभी चावल के निर्यात प्रतिबंध को वापस लेने पर विचार किया जा सकता है। इसमें पांच-छह माह का समय लगने की संभावना है।