iGrain India - चंडीगढ़ । पिछले साल की तुलना में चालू सीजन के दौरान यद्यपि कपास का बिजाई क्षेत्र पंजाब में घट गया लेकिन राजस्थान एवं हरियाणा में बिजाई की स्थिति अच्छी रही। फसल को पिंक बॉलवर्म कीट से अभी भी खतरा बना हुआ है।
पिछले दो साल की तुलना में इस बार इस कीट का प्रकोप ज्यादा देखा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि उत्तरी भारत में 2022-23 के खरीफ सीजन के अंतिम दिनों में ही इस कीट का प्रकोप देखा गया था जबकि चालू सीजन में आरंभिक दौर से ही इसका लक्षण और प्रमाण सामने आ रहा है।
जोधपुर स्थित संस्थान- साउथ एशिया बायो टेक्नोलॉजी सेंटर के डायरेक्टर का कहना है कि यह किसानों के लिए एक बड़ा खतरा है।
सामान्य पिंक बॉलवर्म कीट कपास की फसल को प्रगति के मध्यवर्ती एवं अंतिम चरण में प्रभावित करती है जिससे इसकी उपज दर में गिरावट आने तथा क्वालिटी खराब होने की आशंका बढ़ जाती है।
ज्ञात हो कि 2017-18 के सीजन तक उत्तरी भारत में कपास का उत्पादक इलाका इस कीट से पूरी तरह मुक्त था लेकिन 2018-19 के सीजन में हरियाणा के जीन्द तथा पंजाब के भटिंडा जिले में इसका प्रकोप हानिकारक स्तर तक बढ़ गया और उसके बाद इसका दायरा एवं प्रकोप बढ़ता ही रहा।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार उत्तरी जोन (पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान) में कपास का कुल उत्पादन क्षेत्र पिछले साल के 15.44 लाख हेक्टेयर से बढ़कर चालू वर्ष में 16.17 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया।
पंजाब में इसका बिजाई क्षेत्र पिछले साल के 2.54 लाख हेक्टेयर से घटकर इस बार 1.70 लाख हेक्टेयर पर सिमट गया है। दूसरी ओर कपास का उत्पादन क्षेत्र समीक्षाधीन अवधि के दौरान हरियाणा में 6.45 लाख हेक्टेयर से सुधरकर 6.65 लाख हेक्टेयर तथा राजस्थान में 6.45 लाख हेक्टेयर से 21 प्रतिशत बढ़कर 7.82 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया।
राजस्थान में कपास की फसल को हानिकारक रोगों- कीड़ों से अपेक्षाकृत कम खतरा रहता है। राष्ट्रीय स्तर पर कपास का कुल क्षेत्रफल 11 अगस्त तक 121.28 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया जो गत वर्ष के 122.53 लाख हेक्टेयर से कुछ कम है।
पंजाब के भटिंडा एवं फरीदकोट जिले में अगैती बिजाई वाली कपास के पौधों में फूल लगने एवं बॉल (रूई का गोला) बनने की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है लेकिन साथ ही साथ पिंक बॉलवर्म कीट का प्रकोप भी धीरे-धीरे बढ़कर खतरनाक स्तर पर पहुंचता जा रहा है।