iGrain India - नई दिल्ली । जुलाई में देश के अनेक राज्यों में धमाकेदार बारिश करने के बाद दक्षिण-पश्चिम मानसून आराम फरमाने के लिए बैठ गया जबकि इसका एक सिरा पूर्वी एवं पूर्वोत्तर भारत तथा हिमाचल की तराई वाले इलाकों में सक्रिय हो गया।
उम्मीद की जा रही थी कि 15 अगस्त के बाद मानसून उन प्रांतों में नींद से जाग कर दोबारा सक्रिय हो जाएगा लेकिन अब जो संकेत मिल रहे हैं उससे पता चलता है कि इसकी सक्रियता, तीव्रता एवं गतिशीलता अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुंच पाएगी और खासकर पश्चिमोत्तर भारत तथा दक्षिणी राज्यों में वर्षा का अभाव महसूस किया जा सकता है।
बेशक पंजाब-हरियाणा में सिंचाई की अच्छी सुविधा होने से धान की फसल को तत्काल कोई खतरा नहीं है लेकिन अन्य राज्यों में दूसरी खरीफ फसलों पर तो असर पड़ ही सकता है। दक्षिण भारत में केरल को अच्छी बारिश की सख्त जरूरत है।
वहां लम्बे समय से वर्षा का अभाव होने से बांधों-जलाशयों में पानी का स्तर तेजी से घट रहा है। केरल को मसाला प्रदेश कहा जाता है। यदि तत्काल वहां अच्छी वर्षा नहीं हुई तो खासकर छोटी इलायची और कालीमिर्च का उत्पादन काफी हद तक प्रभावित हो सकता है।
बंगाल की खाड़ी के ऊपर जो कम दाब का क्षेत्र बना है उससे भी केवल कुछ ही राज्यों में एक- दो दिन के लिए बारिश होने की संभावना है।
वर्षा का अभाव आगामी समय में गुजरात और राजस्थान को भी महसूस हो सकता है क्योंकि लम्बे समय तक इसका अभाव खरीफ फसलों के लिए नुकसान दायक साबित हो सकता है।
यह सही है कि खरीफ फसलों की खेती अब तक कुल मिलाकर संतोषजनक रही है लेकिन तमाम फसलें अभी प्रगति के चरण में हैं जहां उसे नियमित अंतराल पर वर्षा की जरूरत पड़ेगी।