iGrain India - नई दिल्ली । खरीफ फसलों के अल नीनो मौसम चक्र के परोक्ष रूप से बुरी तरह परेशान किया और खासकर अगस्त में इसके दक्षिण-पश्चिम मानसून को लगभग गतिहीन कर दिया। अगस्त में गर्मी भी चरम पर रही।
वस्तुत: चालू वर्ष का अगस्त महीना पिछले 101 साल में सबसे ज्यादा गर्म एवं शुष्क रहा जिससे अनेक राज्यों में खरीफ फसलों की काफी दुर्गति हो गई। सितम्बर में मानसून कुछ सक्रिय अवश्य हुआ लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी।
वैसे भी चालू माह की बारिश नियमित नहीं रही और इसलिए देश को बड़ा भाग सूखे की चपेट में फंसा रह गया। आमतौर पर अक्टूबर-दिसम्बर की तिमाही के दौरान देश में उत्तर पूर्व मानसून सक्रिय रहता है जब दक्षिण भारत में अच्छी बारिश होती है।
तब इस पर भी अल नीनो का प्रकोप रहा तो उड़ीसा से लेकर केरल तक कृषि क्षेत्र की स्थिति कमजोर रह सकती है। चालू मानसून सीजन के दौरान कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु तथा केरल में बारिश कम हुई।
सामान्यतः अक्टूबर-दिसम्बर के दौरान तापमान नीचे रहता है इसलिए बारिश में थोड़ी कमी (5-10 प्रतिशत) आने से कोई ज्यादा फर्म नहीं पड़ेगा मगर माना जा रहा है कि जनवरी-मार्च की तिमाही के दौरान अल नीनो की सक्रियता बढ़ जाएगी।
ज्ञात हो कि इस वर्ष फरवरी में तापमान अप्रत्याशित रूप से काफी बढ़ जाने तथा मार्च-अप्रैल में बेमौसमी वर्षा होने से गेहूं की फसल को काफी नुकसान हो गया।
हालांकि सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया और गेहूं का उत्पादन उछलकर 1127 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंचने का अनुमान लगाया लेकिन जब इसकी सरकारी खरीद नियत लक्ष्य से काफी पीछे रह गई और थोक मंडियों में सीमित आवक के पास कीमतें बढ़ने लगीं तब यह स्पष्ट हो गया कि गेहूं का वास्तविक उत्पादन सरकारी अनुमान से करीब 9-10 प्रतिशत कम हुआ। धान-चावल का उत्पादन भी प्रभावित हुआ था। 2022-23 का सीजन अल नीनो वाला समय नहीं था।
जनवरी-मार्च के दौरान रबी फसलों की प्रगति का समय होता है इसलिए उस वक्त मौसम का अनुकूल रहना अत्यन्त आवश्यक होता है। यदि तापमान में वृद्धि हुई और असामयिक वर्षा तथा आंधी-तूफान का प्रकोप रहा तो फसलों को नुकसान हो सकता है।