iGrain India - नई दिल्ली । जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती का मामला एक बार फिर अधर में अटक गया है। दरअसल बीज के तौर पर व्यावसायिक रिलीज के लिए दाने का जो न्यूनतम भार होने का नियम प्रचलित है जीएम सरसों उस पर खरी नहीं उतरी है।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर अगली सुनवाई 10 अक्टूबर को होने वाली है जिसमें केन्द्र सरकार आगामी रबी सीजन के दौरान इसका फिल्ड ट्रायल जारी रखने की अनुमति हासिल करने का प्रयास कर सकती है।
उल्लेखनीय है कि धारा मस्टर्ड हाइब्रिड (डीएमएच-1) भारत की पहली जीएम सरसों है लेकिन बीज के रूप में बड़े पैमाने पर रिलीज के लिए आवश्यक न्यूनतम भार की शर्त को यह पूरा करने में विफल हो गई है। लेकिन इसकी औसत उपज दर एवं तेल के अंश के सम्बन्ध में जो दावा किया गया था उसमें कोई अंतर नहीं पाया गया है।
ध्यान देने की बात है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा पिछले रबी सीजन के दौरान छह अलग-अलग स्थानों पर इस जीएम सरसों का फील्ड परीक्षण संचालित किया गया था। इसमें डी एम एच-1 सरसों की उत्पादकता करीब 26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा तेल की रिकवरी दर 40 प्रतिशत पाई गई।
लेकिन इसके 1000 दाने का वजन केवल करीब 3.5 ग्राम रहा जबकि इसे कम से कम 4.5 ग्राम अवश्य होना चाहिए था तभी यह सीड वैरायटी के रूप में अधिसूचित होने के लिए पात्र माना जा सकता था।
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार परिषद के आठ में से छह स्थानों पर जीएम सरसों के फील्ड परीक्षण को जारी रखने की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए इस अध्ययन रिपोर्ट का सहारा ले सकती है।
अनुसंधान परिषद द्वारा इन स्थानों पर भारत की प्रथम जीएम खाद्य फसल का परीक्षण किया जा रहा था। इतना ही नहीं बल्कि इस अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर केन्द्र सरकार उच्चतम न्यायालय से उस 'मौखिक अंडरटेकिंग' को वापस लेने की अनुमति देने का आग्रह भी कर सकती है जो उसने नवम्बर 2022 में दिया था।
उस समय सरकार ने सर्वोच्च न्यायलय से वादा किया था कि वह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के नियत छह स्थानों को छोड़कर किसी अन्य जगह पर जीएम सरसों के फील्ड परीक्षण की कोशिश नहीं करेगी।
केन्द्र को उम्मीद थी की सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर नियमित सुनवाई होगी मगर इसमें छह माह का अंतर बन गया जिससे सरकार को अपनी अंडरटेकिंग को वापस लेने के लिए उच्चतम न्यायालय में अर्जी दाखिल करने के लिए विवश होना पड़ा।