iGrain India - नई दिल्ली । इसमें कोई संदेह नहीं है कि थोक मंडियों में गेहूं का दाम अब भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से ऊंचा चल रहा है और शायद अगली नई फसल के आने तक ऊंचा ही रहेगा लेकिन यह भी सही है सरकार के नीतिगत प्रयासों एवं बाजार हस्तक्षेप से इसकी कीमतों में जोरदार तेजी आने की संभावना पर आंशिक रूप से ब्रेक लग गया है।
सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत मार्च 2024 तक अपने बफर स्टॉक से कुल 50 लाख टन गेहूं बेचने की घोषणा की है जिसमें से करीब 20 लाख टन की बिक्री हो चुकी है।
चूंकि छोटे-छोटे मिलर्स भी इसकी खरीद कर रहे हैं और स्थानीय बाजारों में गेहूं उत्पादों को बेच रहे हैं इसलिए मंडियों में गेहूं के दाम पर दबाव देखा जा रहा है।
पिछले साल सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना को शुरू करने में बहुत देर कर दी थी जिसके चलते दिल्ली सहित कई अन्य मंडियों में इसका भाव उछलकर नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था लेकिन इस वर्ष उसने मौके की नजाकत को भांपते हुए जून के अंत से ही गेहूं बेचना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं बल्कि खरीदारों का आकर्षण एवं उत्साह बरकरार रखने के लिए गेहूं के आरक्षित मूल्य का स्तर भी नीचे रखा गया है।
गेहूं का न्यूनतम आरक्षित मूल्य (रिजर्व प्राइस) एफएक्यू श्रेणी के लिए 2150 रुपए प्रति क्विंटल तथा यूआरएस श्रेणी के लिए 2125 रुपए प्रति क्विंटल नियत किया गया है जो इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य के करीब है।
गेहूं की बिक्री की मात्रा भी प्रत्येक खरीदार के लिए सीमित रखी गई है ताकि कोई भारी-भरकम मात्रा में इसे ख़रीदकर उसका स्टॉक दबाने का प्रयास न कर सके। इसी सोच के कारण व्यापारियों के लिए सरकारी गेहूं की खरीद पर रोक लगा दी गई है और केवल फ्लोर मिलर्स एवं उत्पाद निर्माताओं को ही इसकी खरीद करने की अनुमति दी गई है। गेहूं एवं आटा का दाम अब भी ऊंचे स्तर पर ही है।