iGrain India - नई दिल्ली । चीनी उद्योग के शीर्ष संगठन- इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) ने गन्ना उत्पादकों को उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) का भुगतान किस्तों में करने की अनुमति देने की जरूरत पर जोर दिया है ताकि चीनी मिलों को बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों से कर्ज लेने एवं उस पर ब्याज चुकाने से राहत मिल सके और साथ ही साथ किसानों की आमदनी में भी बढ़ोत्तरी सुनिश्चित हो सके।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) को भेजे एक पत्र में इस्मा ने कहा है कि आमतौर पर चीनी मिलें गन्ना की खरीद एवं क्रशिंग औसतन पांच से छह महीने तक करती हैं जबकि उससे निर्मित चीनी की बिक्री करने में 16 से 18 महीने तक का समय लग जाता है।
ऐसी हालत में गन्ना की खरीद के बाद महज 14 दिनों के अंदर उसके मूल्य का भुगतान करने के नियम का पालन करने के लिए मिलर्स को बैंकों से ऋण लेना पड़ता है और इस पर ब्याज भी चुकाना पड़ता है।
पत्र में यह प्रस्ताव रखा गया है कि गन्ना की खरीद के बाद प्रथम चरण के दौरान 60 प्रतिशत एफआरपी का भुगतान 14 दिन के अंदर करने का नियम बनाया जाए जबकि 20 प्रतिशत का भुगतान मई अथवा जून में गन्ना क्रशिंग की अवधि समाप्त होने तक शेष 20 प्रतिशत का भुगतान अगले मार्केटिंग सीजन के आरंभ यानी अक्टूबर में करने की अनुमति दी जाए।
इसका मतलब यह होगा कि यदि 11 प्रतिशत चीनी की रिकवरी दर के आधार पर 60 प्रतिशत मूल्य का भुगतान 14 दिनों के अंदर किया गया तो यह करीब 210.89 रुपए प्रति क्विंटल बैठेगा।
गन्ना मूल्य भुगतान की मौजूदा प्रणाली से चीनी मिलों को भारी कठिनाई हो रही है और जिन प्रांतों में गन्ना के लिए एफआरपी से ऊपर 'राज्य समर्थित मूल्य' (सैप) की प्रथा लागू है वहां चीनी मिलों की कठिनाई काफी बढ़ गई है।
यदि किस्तों में भुगतान की व्यवस्था हो जाए तो मिलर्स को ऋण एवं ब्याज के अनावश्यक खर्च से छुटकारा मिल सकता है। मौजूदा सिस्टम के तहत गन्ना उत्पादकों को तो 14 दिनों में भुगतान मिल जाता है मगर चीनी मिलों को कोई राहत नहीं मिलती है।