iGrain India - नई दिल्ली । अगस्त माह में लम्बे समय तक मौसम अत्यन्त शुष्क एवं गर्म रहने तथा उत्तरी भारत में पिंक बॉलवर्म कीट का प्रकोप बढ़ने से चालू खरीफ सीजन के दौरान कपास की औसत उत्पादकता दर पैदावार एवं क्वालिटी प्रभावित होने की आशंका है।
पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान में कपास की फसल पर गुलाबी इल्ली (पिंक बॉलवर्म) कीट का विशेष प्रकोप देखा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल की तुलना में चालू वर्ष के दौरान न केवल कपास के क्षेत्रफल में 5 प्रतिशत की गिरावट आ गई बल्कि इसकी बिजाई में भी 15-20 दिनों की देर हो गई।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के अध्यक्ष का कहना है कि इस वर्ष मई में थोड़ी वर्षा हुई मगर जून का महीना सूखा रहा। इसी तरह जुलाई में अत्यन्त मूसलाधार बारिश हुई लेकिन अगस्त में पूरी तरह सूखे का माहौल बना रहा।
सितम्बर के पहले पखवाड़े में भी वर्षा बहुत कम या नगण्य हुई जबकि दूसरे पखवाड़े में अच्छी वर्षा दर्ज की गई। अब अक्टूबर की वर्षा पर गहरी नजर रखी जा रही है। अगस्त से मध्य सितम्बर तक मौसम शुष्क एवं गर्म रहा जिससे कपास की फसल अनेक इलाकों में बुरी तरह प्रभावित हुई। इससे रूई की उपज दर एवं गुणवत्ता घटने की आशंका है।
अध्यक्ष के अनुसार चालू माह के अंत तक कपास फसल की स्थिति काफी हद तक स्पष्ट हो जाएगी। कपास की बिक्री पर ध्यान रखना होगा। पिछले सीजन में आवक की गति कमजोर रहने से कपास का औसत वार्षिक भाव 7500 रुपए प्रति क्विंटल दर्ज किया गया जो 6380 रुपए प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से करीब 20 प्रतिशत ऊंचा था।
इस बार कपास का एमएसपी 7020 रुपए प्रति क्विंटल नियत हुआ है और किसान कपास का थोक मंडी भाव इससे 20 प्रतिशत ऊंचा रहने की उम्मीद कर रहे हैं। वे बाजार भाव में तेजी का इंतजार कर सकते हैं।
वर्तमान समय में राष्ट्रीय स्तर पर मंडियों में नए एवं पुराने माल को मिलाकर करीब 50-55 हजार गांठ कपास की औसत दैनिक आवक हो रही है। नेशनल कॉटन ब्रोकर्स एसोसिएशन के अनुसार पुरानी कपास का भाव 7200-7300 रुपए प्रति क्विंटल तथा नई कपास का दाम करीब 7000 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है जो एमएसपी के लगभग बराबर ही है। बिनौला का भाव गिरने से कपास के दाम पर दबाव बढ़ा है।
रायचूर, अडोनी, येम्मीगानूर तथा नांरपाल सहित कर्नाटक की अन्य मंडियों में 5000-7000 गांठ कपास की आपूर्ति हो रही है और इसकी खरीद-बिक्री की गति धीमी देखी जा रही है।