गोरखपुर, 20 सितंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने आदि शंकर की ज्ञान साधना के लिए उनकी काशी यात्रा के एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि काशी में स्थित ज्ञानवापी कूप मात्र एक स्ट्रक्चर नहीं है, बल्कि वह ज्ञान प्राप्ति का माध्यम और साक्षात भगवान विश्वनाथ का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि काशी में ज्ञान साधना के लिए आए आदि शंकर को भगवान विश्वनाथ ने एक अछूत चंडाल के रूप में दर्शन दिया और अद्वैत व ब्रह्म के संबंध में ज्ञानवर्धन किया। सीएम योगी गोरखनाथ मंदिर में युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 55वीं एवं राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 10वीं पुण्यतिथि समारोह के उपलक्ष्य में शुक्रवार शाम श्रीमद्भागवत महापुराण कथा ज्ञानयज्ञ के विराम पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। मंदिर के दिग्विजयनाथ स्मृति भवन सभागार में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भगवान किस रूप में दर्शन दे दें, यह कोई नहीं जानता। इस संबंध में एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि केरल से निकले संन्यासी आदि शंकर को जब लगा कि वह अद्वैत ज्ञान में परिपक्व हो गए हैं तो वह ज्ञान अर्जन भगवान विश्वनाथ की पावन नगरी के लिए काशी पधारे। एक सुबह जब वह गंगा स्नान के लिए जा रहे थे तो भगवान विश्वनाथ अछूत माने जाने वाले चंडाल के रूप में उनके मार्ग में आ गए। आदि शंकर ने जब कथित अछूत को मार्ग से हटने को कहा तो उन्हें जवाब मिला कि आप तो अद्वैत शिक्षा में पारंगत हैं। आप तो 'ब्रह्म सत्य है' कि बात करते हैं। यदि आपके भीतर का मेरा ब्रह्म अलग-अलग है तो आपका अद्वैत सत्य नहीं है। क्या आप मेरी चमड़ी देखकर अछूत मानते हैं। तब आदि शंकर को यह पता चला कि यह तो वही भगवान विश्वनाथ हैं जिनकी खोज में वह काशी आए हैं।
सीएम योगी ने कहा कि कथा का मतलब सिर्फ सुनना नहीं है बल्कि इसकी शिक्षाओं को जीवन के आचरण में उतारना भी है। श्रीमद्भागवत महापुराण या अन्य कथाएं हमें भारत की समृद्ध परंपरा, प्राचीनता, संस्कृति और इतिहास पर गौरव की अनुभूति कराती हैं। पांच हजार वर्षों से इन कथाओं का श्रवण भारत में किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत एक धार्मिक देश है। भारत की आत्मा धर्म में है और यह धर्म सनातन धर्म है। सनातन धर्म की कथाएं सामाजिक एकता और राष्ट्रीय एकात्मता के आधार हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि एक बार केरल के एक वामपंथी नेता जो केरल के मुख्यमंत्री भी हुए उन्होंने एक टिप्पणी लिखी थी। उन्होंने लिखा था कि जब उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ली तब कहा गया था कि भारत एक राष्ट्र नहीं बल्कि राष्ट्रीयता का समूह है। पर जब वह भारत में पश्चिम से लेकर पूर्व तक, उत्तर से लेकर दक्षिण तक घूमने निकले तब उन्होंने हर ओर समृद्ध विरासत को, मठों को और मंदिरों को देखा। उन्हें पता चला कि केरल से निकले एक संन्यासी ने देश के चारों कोनों में चार धर्म पीठों की स्थापना की थी। दक्षिण से निकले संन्यासी ने बिना भेदभाव भारत में व्यापक धर्म जागरण का अभियान चलाकर सबको जोड़ने का काम किया था। तब समझ में आया कि जिन्हें हम मठ और मंदिर बोलते हैं, वह केवल उपासना के केंद्र नहीं हैं बल्कि राष्ट्रीयता के आधार हैं। भारत की आत्मा इनमें निवास करती है। वास्तव में भारत भले ही पूर्व में रजवाड़ों में बंटा रहा हो, पर यह एक सांस्कृतिक इकाई के रूप में ही रहा है। यह एक नहीं होता तो आदि शंकर देश के चारों कोनों में पीठों की स्थापना नहीं कर पाते।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सांस्कृतिक इकाई के रूप में भारत एक नहीं होता तो जगतगुरु रामानंदाचार्य जगह-जगह पीठों की स्थापना के जागरण का अभियान नहीं चला पाते। उन्होंने हर जाति के भक्तों को जोड़ा। उनके शिष्यों में एक तरफ रविदास थे तो दूसरी तरफ कबीरदास। इसी तरह दक्षिण से निकले रामानुजाचार्य ने पूरे भारत में लोगों को जोड़ने का अभियान चलाया।
सीएम योगी ने कहा कि महायोगी गुरु गोरखनाथ समेत हमारे आचार्यों, संतों, ऋषियों, मुनियों ने भारत को एकता के सूत्र में बांधने की परंपरा को मजबूत किया। उन्होंने कहा कि हमारे यहां एक तरफ विध्वंसक परंपरा चली जिन्हें असुर बोला गया। अलग-अलग कालखंड में उसके नमूने हमें रावण, कंस या दुर्योधन के रूप में देखने को मिले। दूसरी तरफ दैवीय सत्ता से ओतप्रोत ऋषियों और मुनियों की परंपरा, धार्मिक यात्राओं की परंपरा भी साथ-साथ चली।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण व इस तरह की अन्य कथाओं से हमें जीवन को समझने और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। पांच हजार वर्ष से इन कथाओं ने कोटि-कोटि मानवों के उद्धार का मार्ग प्रशस्त किया है। उन्होंने कहा कि अपने पूर्वजों और आचार्य की स्मृतियां को जीवंत बनाए रखने के लिए हम भावपूर्वक कथाओं का आयोजन करते हैं। मुख्यमंत्री ने श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा सुनाने के लिए अमेरिका से सीधे गोरखपुर आए कथा व्यास काशी पीठाधीश्वर डॉ. राम कमल वेदांती जी के प्रति आभार भी व्यक्त किया।
--आईएएनएस
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