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विंध्याचल में 30 वर्षों से जारी है नि:शुल्क भंडारे की परंपरा, हर दिन पांच हजार लोगों को मिलता है भोजन

प्रकाशित 12/10/2024, 09:19 pm
विंध्याचल में 30 वर्षों से जारी है नि:शुल्क भंडारे की परंपरा, हर दिन पांच हजार लोगों को मिलता है भोजन

मिर्जापुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। सेवा और मानवता की मिसाल बने शुक्ला परिवार द्वारा 30 वर्षों से चलाए जा रहे नि:शुल्क भंडारे की परंपरा आज भी जारी है। विंधेश्वरी ग्रुप के संस्थापक राजेंद्र प्रसाद शुक्ला ने यह परंपरा विंध्याचल में शुरू की थी, जो आज उनके भतीजे शशिकांत शुक्ला उर्फ सोनू के नेतृत्व में आगे बढ़ रही है।इस भंडारे की खासियत यह है कि यहां हर साल दोनों नवरात्रि के दौरान करीब 5000 लोग प्रतिदिन भोजन करते हैं। इसके साथ ही शुक्ला परिवार द्वारा नि:शुल्क आश्रय भी उपलब्ध कराया जाता है। इस सेवा का उद्देश्य मां विंध्यवासिनी की कृपा को समर्पित करते हुए समाज के प्रति योगदान देना है।

शशिकांत शुक्ला उर्फ सोनू बताते हैं कि हम लोग लखनऊ में छप्पर के नीचे एक चाय की दुकान चलाते थे। बेंच में सोते थे। व्यापार करने के लिए जेवर तक गिरवी रख चुके हैं। हमारे चाचा जी राजेंद्र शुक्ला विंध्याचल गए उन्होंने नि:शुल्क भंडारे का शुरुआत की। यह 50 किलो आटे और 25 किलो चावल से शुरू हुआ था। आज करीब 5000 हजार लोग नि:शुल्क भोजन कर रहे हैं। यह नवरात्रि से शुरू होकर पूर्णमासी तक 15 दिन चलता है। हर दिन 5000 लोग भोजन करते हैं। आखिरी दिन यहां पंडा समुदाय के लोग खाते हैं।

शशिकांत शुक्ला ने बताया कि इसकी शुरुआत पहले सरकारी अस्पताल से की थी। वर्तमान में हमने खुद की जगह ले ली गई है। हम लोग नवरात्रि के पहले आते हैं। नवरात्रि के बाद तक चलाते हैं। अब हमने भंडारे के लिए अपनी जगह ले ली है। जिसमें तकरीबन 600 व्यक्ति रुक सकते है। भोजन के साथ ठहरने की व्यवस्था की जाती है। यहां पर कई प्रदेशों से लोग आकर ठहरते हैं। चूंकि स्टेशन से नजदीक है इस कारण यहां लोग तुरंत आ जाते है। ठहरने के लिए एक बेड चादर अभी यही है। आगे चलकर यहां कमरे बनाने की योजना है।

उन्होंने बताया कि नवरात्रि से लेकर अब तक तकरीबन 75 से 80 हजार लोग भोजन कर चुके हैं। अभी यह सिलसिला चालू है। जो कि 17 अक्टूबर तक चलता रहेगा। जितने भी भक्त आ जाते हैं। उनको सुबह 10 बजे से चार बजे तक भोजन दिया जाता है। इस भंडारे की सबसे ज्यादा खासियत होती है कि अन्न की बिलकुल भी बर्बादी न हो। इसके लिए खाना परोसने वाला व्यक्ति हर भोजन करने वाले पर निगरानी बनाए रखता है। बार बार माइक से पुकारा भी जाता है। जागरूकता के लिए दीवारों पर स्लोगन भी लिख रखे हैं। जिसका फायदा मिलता है। भोजन की बर्बादी न हो, इस पर हमारे हर सहयोगी का पूरा जोर रहता है।

शशिकांत का कहना है कि मां की कृपा इस बार विशेष रूप से है। इसी कारण छप्पर से निकलकर आज हमारे नौ प्रतिष्ठान हैं। जो कि सभी विंध्यवासिनी के नाम से ही संचालित हो रहे हैं। चाहे कैटरिंग हो, या फॉर्म हाउस मैरिज लॉन सब माता रानी के नाम से ही चल रहे हैं। हम लोग अपने व्यापार की शुरुआत की कमाई मां के नाम से ही निकालते हैं। जिसका 35 से 40 करोड़ के बीच टर्न ओवर हो चुका है।

उन्होंने बताया कि नि:शुल्क भोजन की यह व्यवस्था दोनों नवरात्रि में संचालित की जाती है। चाहे चैत्र हो या फिर शारदीय, दोनों में यह भंडारा संचालित होता है। इसमें चाहे जो आ जाए सबकी भोजन की व्यवस्था होती है। पहले यह व्यवस्था सरकारी अस्पताल में करते हैं। 10 सालों से अपना भवन बना कर रहे हैं। अपनी कमाई का 20 फीसद धार्मिक अनुष्ठान लिए खर्च करते हैं। उन्होंने कहा कि जब से इसकी शुरुआत हुई तब से दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की हुई है।

बिहार की रहने वाली विद्या का कहना है कि यह भंडारा बहुत अच्छा है। यहां साफ सुथरी व्यवस्था देखकर मन हर्षित है। भोजन भी बड़ा स्वादिष्ट है।

पूर्वांचल से आए राजकिशोर सिंह तीन अक्टूबर से भंडारे का लाभ ले रहे हैं। उनका कहना है कि यहां से सेवादार बहुत ही अच्छे स्वभाव के हैं। यहां पूरी साफ सफाई से भोजन बनता है। फलाहार वालों की अलग व्यवस्था है। सबसे खास बात यह पूरा परिसर नशा मुक्त है। यहां अन्न की बर्बादी नहीं होती है।

विंध्याचल के तीर्थ पुरोहित पंडित धीरज मिश्रा का कहना है कि यह भंडारा तकरीबन 30 साल से चल रहा है। यह बहुत ही अच्छा है। यहां हर वर्ग के लोग प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। यह पूरे क्षेत्र में इतना वृहद चलने वाला पहला भंडारा है। यह भंडारा दोनों नवरात्रि चैत्र और शारदीय दोनो में आयोजित होता है। सुबह से लेकर शाम तक संचालित होता है। माता रानी की कृपा है, आगे और बड़ा भंडारा होगा। जो कि लगभग तीस वर्षों से चल रहा है। विंधेश्वरी परिवार बहुत ही अच्छे संस्कार वाला है। इससे पूरा पुरोहित समाज जुड़ा है।

--आईएएनएस

विकेटी/एएस

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