नई दिल्ली, 22 अक्टूबर (आईएएनएस)। चीन ने पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं के बीच गतिरोध समाप्त करने के लिए भारत के साथ समझौता किया है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने इस समझौते की पुष्टि की है। इसी पर अब रक्षा विशेषज्ञ जीजे सिंह ने आईएएनएस से खास बातचीत की है।
उन्होंने कहा, “चीन के साथ चल रहे दूसरे डिस-इंगेजमेंट के समझौते की पृष्ठभूमि में कई जटिल भौगोलिक और राजनीतिक कारक हैं। चीन चाहता है कि भारतीय सेनाएं 2020 की स्थिति में वापस लौटें, जबकि उसने अपनी तरफ से कई महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे का निर्माण कर लिया है। यह स्थिति भारत के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि चीन अपनी पेट्रोलिंग गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है, जबकि बुनियादी ढांचे को हटाने का कोई संकेत नहीं दे रहा है।”
उन्होंने कहा, “चीन की रणनीति को समझने के लिए हमें उसके हालिया कार्यों पर ध्यान देना होगा। हाल ही में, उसने ताइवान के चारों ओर सैन्य अभ्यास किया, इससे स्पष्ट संदेश दिया कि वह किसी भी समय ताइवान पर आक्रमण कर सकता है। यह अमेरिका और ताइवान के लिए एक चेतावनी थी। दक्षिण चीन सागर में, चीन अपनी संप्रभुता का दावा करते हुए स्वतंत्रता की आवाजाही को चुनौती देता है, और इस संदर्भ में क्वाड जैसे अंतरराष्ट्रीय सहयोग का महत्व बढ़ जाता है। अगर वहां कोई समस्या आती है, तो क्वाड के सदस्य देशों को मिलकर जवाब देना पड़ सकता है।”
उन्होंने कहा, “चीन की यह भी चिंता है कि भारत की आक्रामक नीति और "मिरर टू मिरर" तैनाती ने उसे एक निश्चित दबाव में डाल दिया है। अगर भारत और चीन के बीच लद्दाख में शांति स्थापित होती है, तो इससे चीन का ध्यान ताइवान की ओर कम हो सकता है। लेकिन यह भी सच है कि यदि चीन ताइवान पर आक्रमण करता है, तो इसका सीधा प्रभाव भारत पर पड़ेगा। अमेरिका, जो क्वाड का हिस्सा है, भारतीय सेनाओं को समर्थन देने के लिए आगे आ सकता है।”
उन्होंने कहा, “चीन का लद्दाख में समझौता करने का निर्णय उसकी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है। यह स्पष्ट है कि वह ताइवान पर ध्यान केंद्रित करने के लिए भारत के साथ सीमाओं को स्थिर रखना चाहता है। यदि वह ताइवान को नियंत्रित करता है, तो अमेरिका के साथ संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में भारत को सतर्क रहना होगा, क्योंकि यह संघर्ष भारत पर भी दबाव डाल सकता है।”
उन्होंने कहा, “चीन का निर्णय केवल लद्दाख की सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उसकी व्यापक भौगोलिक रणनीति का एक हिस्सा है, जिसमें ताइवान और दक्षिण चीन सागर की सुरक्षा भी शामिल है। भारत को इस स्थिति का गहराई से विश्लेषण करना होगा और अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों को सुनिश्चित करने के लिए सक्षम कदम उठाने होंगे।”
रक्षा विशेषज्ञ ने कहा, “अगर हम इस पूरे मामले को कूटनीतिक दृष्टिकोण से देखें, तो इसमें कई महत्वपूर्ण पहलू उभरकर सामने आते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान में तेजी से बढ़ने के रास्ते पर है, और यह ट्रिलियन डॉलर के आंकड़े को छूने की क्षमता रखती है। दूसरी ओर, चीन की अर्थव्यवस्था दुनिया भर में गहराई से एकीकृत है। यदि चीन और भारत के बीच समझौता होता है, तो यह न केवल व्यापार के नए द्वार खोलेगा, बल्कि दोनों देशों को आर्थिक लाभ भी पहुंचाएगा। हालांकि, चीन को इस समझौते से अधिक लाभ मिल सकता है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में उसकी अधिक गहरी जड़ें हैं।”
--आईएएनएस
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