नयी दिल्ली, 16 अप्रैल (आईएएनएस)। रूस-यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग के कारण उपजे आपूर्ति संकट का दबाव देश के वाहन क्षेत्र पर भी देखा जा सकता है। आपूर्ति बाधा की वजह से कच्चे माल की कीमतों में तेज इजाफा हुआ है, जिससे निपटने के लिये वाहन निर्माता कंपनियों को वाहनों के दाम बढ़ाने पड़े हैं।सेमीकंडक्टर की किल्लत धीरे-धीरे खत्म होने लगी, जिससे माना जा रहा था कि यह साल वाहन उद्योग के लिये बेहतर साबित होगा। शुरूआती माह के वाहन बिक्री के आंकड़े भी यहीं रूझान दिखा रहे थे लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले और उसके बाद चीन में लगे कोविड लॉकडाउन ने पूरी बाजी पलट दी।
यूक्रेन और रूस से कच्चे माल की आपूर्ति बाधित हुई है, जिससे लिथियम, कोबाल्ट, निकेल, अल्यूमिनियम और स्टील के दाम में तेज बढ़ोतरी देखी गयी है। निकेल के दाम 60 प्रतिशत तक बढ़े हैं। कच्चे माल के दाम में तेजी के अलावा विदेशी मुद्रा विनिमय दर में भारी उतार-चढ़ाव और संचालन लागत में तेजी भी वाहन उद्योग के लिये प्रतिकूल साबित हुई।
कांउटरप्वांइट रिसर्च के अनुसार, भारतीय वाहन निर्माताओं को लागत बढ़ोतरी पर काबू पाने के लिये वाहनों की कीमत में कम से कम दो प्रतिशत की तेजी लानी पड़ी।
वरिष्ठ शोध विश्लेषक सौमेन मंडल ने कहा कि किया मोटर्स ने अपने सभी वाहनों के दाम बढ़ा दिये। मारुति सुजुकी (NS:MRTI) के कारों की कीमत भी इस साल 8.8 प्रतिशत तक बढ़ी हैं। टोयोटा, टाटा मोटर्स (NS:TAMO), हुंडई और एमजी मोटर्स ने भी अपने सभी वाहनों के दाम बढ़ाये हैं।
प्रीमियम वाहन बनाने वाली कंपनी बीएमडब्ल्यू इंडिया और मर्सिडीज बेंज इंडिया तथा ऑडी इंडिया ने भी वाहनों के दाम में कम से कम तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी करने की घोषणा की।
देश में ईवी की दखल अभी उतनी नहीं है इसी वजह से लिथियम और कोबाल्ट के दाम बढ़ने का सीधा असर वाहन उद्योग ने महसूस नहीं किया। सर्वाधिक असर स्टील के दाम बढ़ने का हुआ है।
--आईएएनएस
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