नई दिल्ली, 25 अगस्त (आईएएनएस)। भारत की लो-कॉस्ट एयरलाइन कंपनी स्पाइसजेट ने कथित तौर पर कम से कम छह से लेकर आठ महीने से अपने कर्मचारियों के पेंशन फंड में पैसा जमा नहीं किया है।हालांकि, स्पाइसजेट के एक प्रवक्ता ने आईएएनएस को बताया कि कंपनी ने प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी है।
प्रवक्ता ने कहा कि पीएफ में कुछ देरी हुई। लेकिन, हम जल्द ही एक बड़ी राशि जमा करेंगे और वेतन वितरण समय पर होगा। हम सभी निपटान भी समय पर कर रहे हैं। हमें उम्मीद है, जल्द ही सब कुछ साफ हो जाएगा।
उन्होंने बताया कि हम तीन से चार महीने में एक साथ पीएफ जमा कर रहे हैं और जल्द ही इसका भुगतान हो जाएगा।
इस सप्ताह सोमवार को स्पाइसजेट ने पहली तिमाही के लिए अपनी वित्तीय स्थिति में उल्लेखनीय बदलाव की घोषणा की थी।
एयरलाइन ने 30 जून को समाप्त तिमाही के लिए 197.64 करोड़ रुपये का समेकित शुद्ध लाभ बताया था। यह पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान दर्ज 783.72 करोड़ रुपये के शुद्ध घाटे से उल्लेखनीय रूप से बेहतर है।
यह तिमाही के लिए कुल खर्चों में 36 प्रतिशत की भारी कमी के कारण हुई, जो कि 2,069.24 करोड़ रुपये थी।
हालांकि, गुरुवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने कम लागत वाली एयरलाइन स्पाइसजेट और उसके अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक (सीएमडी) को 10 सितंबर तक काल एयरवेज और उसके प्रमोटर कलानिधि मारन को 100 करोड़ रुपये का भुगतान करने के लिए कहा था, ऐसा न करने पर अदालत कुर्की पर विचार कर सकती है।
मारन और काल एयरवेज की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने कहा कि देनदार - स्पाइसजेट और सीएमडी - को एक सप्ताह के भीतर एसेट्स और वीकली कलेक्शन का हलफनामा दाखिल करना था, जिसे वे समय पर दाखिल करने में विफल रहे हैं। इसे न्यायालय में अनिवार्य प्रारूप में दायर नहीं किया गया।
9 अगस्त को अदालत ने काल एयरवेज और मारन के आवेदन पर नोटिस जारी किया था, जिसमें स्पाइसजेट के दैनिक राजस्व संग्रह का 50 प्रतिशत उन्हें साप्ताहिक आधार पर भुगतान करने की मांग की गई थी।
गुरुवार को सुनवाई के दौरान मनिंदर सिंह ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट से पारित 13 फरवरी और 7 जुलाई का आदेश प्री-इम्पटिव, कंडीशनल और सेल्फ-ऑपरेटिव है, जिसका आज तक अनुपालन नहीं किया गया है।
इसके अतिरिक्त उन्होंने प्रस्तुत किया कि सीएमडी ने हलफनामा सीलबंद कवर के तहत दायर किया है, जिसे डिक्री धारकों - काल एयरवेज और मारन - को नहीं दिया गया है।
दूसरी ओर वरिष्ठ अधिवक्ता अमित सिब्बल ने प्रस्तुत किया कि उनकी गणना की गई राशि 279 करोड़ थी, न कि 397 करोड़ रुपये, जैसा वकील मनिंदर सिंह ने तर्क दिया था।
उन्होंने आगे 10 दिनों के भीतर 75 करोड़ रुपये जमा करने की पेशकश की, जिस पर वकील मनिंदर सिंह ने आपत्ति जताई और कहा कि उन्हें यह राशि अप्रैल में चुकानी थी लेकिन उन्होंने आज तक भुगतान नहीं किया है।
--आईएएनएस
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