iGrain India - मुम्बई । हालांकि हाल के वर्षों में दलहन-तिलहन के उत्पादन में बढोत्तरी हुई है लेकिन इसकी घरेलू मांग एवं खपत में उससे कहीं ज्यादा इजाफा हुआ है जिससे मांग एवं आपूर्ति के बीच अंतर काफी बढ़ गया है और विदेशों से दलहनों एवं खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता बढ़ गई है।
2022-23 के मार्केटिंग सीजन (नवम्बर-अक्टूबर) से खाद्य तेलों का आयात तेजी से उछलकर 164 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया जबकि तुवर, मसूर एवं उड़द के आयात में भी भारी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई।
चालू वर्ष के दौरान दलहनों का घरेलू बाजार भाव काफी ऊंचा रहने से इसके उत्पादन में इजाफा होने का अनुमान लगाया जा रहा था लेकिन मौसम एवं मानसून के अनुकूल नहीं होने से पैदावार में गिरावट की आशंका पैदा हो गई।
खरीफ कालीन उत्पादन कमजोर रहा और अब रही दलहन फसलों- खासकर चना तथा मसूर पर सबका ध्यान केन्द्रित हो गया है। व्यापार विश्लेषकों के मुताबिक निकट भविष्य में दाल-दलहनों के दाम में ज्यादा नरमी आना मुश्किल लगता है।
कृषि अर्थशास्त्रियों द्वारा तैयार एक नई रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार अगले सात वर्षों तक दाल-दलहन एवं तेल-तिलहन का घरेलू उत्पादन इसके उपयोग से पीछे रहेगा। दोनों के बीच अंतर या तो मौजूदा स्तर पर बरकरार रहेगा या कुछ और बढ़ जाएगी।
रिपोर्ट के मुताबिक खाद्य उत्पादों की कमी से आयात पर निर्भरता बढ़ेगी और सरकार का प्रयास ज्यादा कारगर साबित नहीं होगा। खाद्य आयात बिक में आगामी वर्षों के दौरान और भी इजाफा हो सकता है।
रपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2030-31 तक दलहन-तिलहन एवं फसलों का उत्पादन घरेलू मांग से कम होगा और आगामी वर्षों में मांग एवं आपूर्ति के बीच अंतर बढ़ता जाएगा। बाजार मूल्य पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा और उसमें तेजी-मजबूती बरकरार रह सकती है।
देश में इसकी उपज दर एवं पैदावार बढ़ाने की सख्त आवश्यक है अन्यथा भारत को आपूर्तिकर्ता देशों की मर्जी और दया पर निर्भर रहना पड़ेगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि भविष्य में इन उत्पादों की खपत तेजी से बढ़ेगी और यदि उसके अनुरूप उत्पादन में सुधार नहीं किया गया आयात पर निर्भरता काफी बढ़ जाएगी।
खरीफ सीजन में दलहनों का उत्पादन खराब मौसम के कारण काफी घट गया जबकि इसके क्षेत्रफल में भी गिरावट आई थी। रबी सीजन में चना का रकबा करीब 9 लाख हेक्टेयर पीछे है। इसकी भरपाई होने में संदेह बना रहेगा।