iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार यह मानकर चल रही है कि घरेलू प्रभाग में खाद्य महंगाई को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक खाद्य उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना सबसे अच्छा उपाय है। इसके अलावा विदेशों से सस्ते आयात को बढ़ावा देना और उद्यमियों व्यापारियों पर बरतना भी इसके उपायों में शामिल है।
दिलचस्प तथ्य यह है कि सरकार एक साथ ही इन सभी उपायों को आजमा रही है लेकिन फिर भी खाद्य महंगाई में अपेक्षित गिरावट नहीं आ रही है।
जानकारों का कहना है कि यह कोई पहला अवसर नहीं है जब भारत में खाद्य महंगाई बढ़ी है। वर्ष 2015 में तुवर दाल का दाम उछलकर 200 रुपए प्रति किलो से भी ऊपर पहुंच गया था।
इसके बाद वर्ष 2016 में खाद्य महंगाई उछलकर सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई थी। आलू, प्याज एवं टमाटर के दाम में अक्सर चढ़ाव-उतार आता रहता है। इसके देखते हुए सरकार ने 'ऑपरेशन ग्रीन' तथा टीओपी (टमाटर, प्याज, आलू) स्कीम की शुरुआत की थी ताकि बाजार में स्थिरता आ सके।
दरअसल आपूर्ति पक्ष को मजबूत बनाकर कीमतों में स्थिरता आना ज्यादा कारगर उपाय है क्योंकि मांग तो अनेक कारणों से अनवरत बढ़ती रहेगी।
वर्ष 2019 एवं 2020 में भी खाद्य महंगाई का ग्राफ ऊंचा रहा था जबकि वर्ष 2021 एवं 2022 में इसमें कुछ और बढ़ोत्तरी हुई। मालूम हो कि 2019 से 2021 तक का समय कोरोना का काल था।
उस समय खाद्यान्न सहित अन्य जिंसों के उत्पादन में गिरवट आई थी लेकिन सरकार ने उत्पादन बढ़ने का अनुमान लगाया था। इससे मांग एवं आपूर्ति के बीच अंतर बना रहा और कीमतों में तेजी देखी गई। वर्ष 2022 में उत्पादन आशानुरूप नहीं हुआ मगर कृषि मंत्रालय ने इसे शानदार बताया।
आंकड़ों की बाजीगरी से व्यावहारिक हकीकत नहीं बदलती है। वर्ष 2023 में टमाटर का भाव उछलकर 200 रुपए प्रति किलो से ऊपर पहुंच गया।
तुवर एवं उड़द जैसी दालों का दाम लम्बे समय से काफी ऊंचे स्तर पर चल रहा है। गेहूं पर मई 2022 से ही निर्यात प्रतिबंध लगा हुआ है मगर फिर भी इसका थोक बाजार भाव नरम नहीं पड़ा है। कच्चे (सफेद) चावल के निर्यात पर भी रोक लगा दी गई है लेकिन कीमतों में गिरावट आना अभी बाक़ी है।
चना का विशाल उत्पादन आंका गया और सरकारी खरीद भी भरपूर हुई मगर कीमतों में तेजी आ गई। चीनी के निर्यात पर जून से ही पाबंदी लगी हुई है।
कहने का तात्पर्य यह है कि सिर्फ निर्यात प्रतिबंधों के सहारे खाद्य महंगाई को नियंत्रित करना मुश्किल है। सरकार ने पीली मटर का आयात तब खोला जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा जबकि आयातक लम्बे समय से इसकी मांग कर रहे थे। समझा जाता है कि अब सरकार गेहूं तथा चना के आयात पर लगे सीमा शुल्क को भी कम या खत्म करने पर विचार कर रही है।