iGrain India - चंडीगढ़ । हालांकि चीनी तथा एथनॉल के दाम में भारी इजाफा होने से देश के चीनी उद्योग को अच्छी आमदनी प्राप्त करने का अवसर मिल रहा है लेकिन पंजाब-हरियाणा के गन्ना उत्पादकों की कठिनाई बढ़ गई है।
किसान संगठनों के अनुसार एक तरफ गन्ना की उपज दर में गिरावट आ रही है तो दूसरी ओर लागत खर्च बढ़ता जा रहा है। गन्ना उत्पादकों को काफी कड़वे अनुभव से गुजरना पड़ रहा है।
गन्ना के राज्य समर्थित मूल्य (सैप) में मामूल बढ़ोत्तरी की जा रही है जबकि फसल पर अक्सर कीड़ों-रोगों का प्रकोप रहता है। इसके अलावा उर्वरकों, कीटनाशी दवाओं एवं मजदूरों पर होने वाला खर्च काफी ऊंचा बैठ रहा है।
कीड़ों-रोगों के प्रकोप से गन्ना की औसत उपज दर घटकर काफी नीचे आ गई है। इसके फलस्वरूप पिछले दो वर्षों के दौरान दोनों राज्यों में गन्ना के क्षेत्रफल एवं उत्पादन में नियमित रूप से गिरावट देखी गई।
पंजाब के जालंधर जिले में गन्ना की औसत उपज दर घटकर 100 क्विंटल प्रति एकड़ के करीब रह गई है जबकि कहीं-कहीं यह 80 क्विंटल तक गिर चुकी है। इससे किसानों को क्षेत्रफल घटाने के लिए विवश होना पड़ रहा है।
गन्ना फसल की कटाई प्रवासी मजदूरों द्वारा हाथ से की जानी है। कम उपज दर के कारण श्रमिकों से कटाई करवाना ज्यादा खर्चीला हो गया है। पहले एक क्विंटल गन्ना की कटाई के लिए 42-45 रुपए की मांग की जाती थी मगर अब श्रमिक 55-60 रुपए की मांग करने लगे हैं।
चीनी मिलर्स भी गन्ना उत्पादकों की बातों से सहमत हैं। उसका कहना है कि श्रमिक खर्च में हो रही बढ़ोत्तरी चिंता का विषय बनी हुई है और इसलिए किसान गन्ना का रकबा घटाते जा रहे हैं।
वस्तुत: कई क्षेत्रों में गन्ना की फसल अब किसानों के लिए लाभदायक साबित नहीं हो रहा है। 2020-21 के सीजन की तुलना में 2023-24 सीजन के दौरान गन्ना का उत्पादन क्षेत्र पंजाब में 92 हजार हेक्टेयर से घटकर 88 हजार हेक्टेयर तथा हरियाणा में 1.08 लाख हेक्टेयर से गिरकर 96 हजार हेक्टेयर रह गया।
इसके फलस्वरूप वहां चीनी के उत्पादन में गिरावट आने की संभावना है। महाराष्ट्र एवं कर्नाटक जैसे अग्रणी उत्पादक प्रांतों में भी चीनी का उत्पादन काफी घटने के संकेत मिल रहे हैं।