iGrain India - नई दिल्ली । हालांकि केन्द्र सरकार चावल के ऊंचे घरेलू बाजार भाव को नियंत्रित करने के लिए तरह-तरह का प्रयास कर रही है लेकिन इसका कोई खास सार्थक परिणाम अभी तक सामने नहीं आया है।
सरकार ने एक तरफ टुकड़ी चावल एवं गैर बासमती सफेद (कच्चे) चावल के व्यापारिक निर्यात पर प्रतिबंध तथा सेला चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत का सीमा शुल्क लगा रखा है तो दूसरी ओर खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत केन्द्रीय पूल से चावल का स्टॉक भी उतार रही है मगर इसके बावजूद कीमतों में गिरावट नहीं आ रही है।
केन्द्र सरकार इससे काफी चिंतित है और उसने व्यापारियों से आग्रह किया है कि वे भारतीय खाद्य निगम से चावल की खरीद में दिलचस्पी दिखाए।
उपभोक्ता मामले मंत्रालय के अनुसार चावल के दाम में करीब 13 प्रतिशत का इजाफा हुआ है जबकि गेहूं आटे के मूल्य में 1.5 प्रतिशत की ही वृद्धि हुई है।
पिछले सप्ताह खाद्य मंत्रालय ने चावल की ऊंची कीमतों के लिए जवाबदेह कारणों का पता लगाने के लिए व्यापारियों एवं निर्यातकों की एक बैठक आयोजित की थी जिसमें इस बात पर भी चर्चा हुई कि ओएमएसएस के तहत खाद्य निगम द्वारा आयोजित सप्ताहिक ई-नीलामी में चावल की अपेक्षित खरीद क्यों नहीं की जा रही है।
साप्ताहिक नीलामी के अंतर्गत खाद्य निगम को 4 लाख टन के कुल ऑफर के सापेक्ष 3.53 लाख टन तक गेहूं की बिक्री करने में सफलता मिल रही है मगर चावल के मामले में यह प्रदर्शन अत्यन्त फीका है। गत सप्ताह 1.93 लाख टन चावल की बिक्री का ऑफर दिया गया था मगर कुल बिक्री महज 10 हजार टन तक पहुंच सकी।
उद्योग-व्यापार समीक्षकों के अनुसार बैठक में सरकार चावल कारोबार में गतिशीलता को बढ़ावा देने के मामले में सफल नहीं हो सकी। अधिकारियों को यह समझना होगा कि गेहूं तथा चावल की बिक्री में भारी अंतर है।
चावल का निर्गत मूल्य (इश्यू प्राइस) भी ऊंचा चल रहा है क्योंकि जिन किस्मों एवं श्रेणियों के चावल की मांग ज्यादा है उसकी आपूर्ति कम हो रही है।
देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग किस्मों के चावल को अधिक पसंद किया जाता है मगर वर्ष 2022 से ही कई वैरायटी के चावल की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो रही है। अब तो मांग एवं आपूर्ति के बीच अंतर और भी बढ़ गया है।