iGrain India - नई दिल्ली । अल नीनो के प्रकोप से मानसून सीजन में मौसम शुष्क एवं गर्म रहने के कारण खरीफ कालीन धान के उत्पादन में गिरावट की संभावना एवं घरेलू बाजार में चावल के बढ़ते दाम को देखते हुए केन्द्र सरकार ने 20 जुलाई 2023 को गैर बासमती संवर्ग के सफेद (कच्चे) चावल के व्यापारिक निर्यात पर अनिश्चित कालीन प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी जबकि 100 प्रतिशत टूटे चावल के निर्यात पर सितम्बर 2022 में ही रोक लगा दी गई थी।
इसके बाद 26 अगस्त 2023 को गैर बासमती सेला चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लगा दिया गया। इसके फलस्वरूप भारत से चावल के निर्यात में भारी गिरावट आने लगी।
दिलचस्प तथ्य यह है कि सरकार ने घरेलू प्रभाग में आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने तथा कीमतों में तेजी पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से उपरोक्त कदम उठाए थे लेकिन इसका सार्थक प्रभाव अभी तक चावल बाजार पर नहीं देखा जा रहा है।
और तो और, धान-चावल की सरकारी खरीद में भी गिरावट आ रही है। स्वयं केन्द्रीय मंत्रालय ने आवक का घरेलू उत्पादन पिछले खरीफ सीजन के 1105 लाख टन से घटकर इस बार 1063 लाख टन पर सिमट जाने का अनुमान लगाया है जबकि वास्तविक उत्पादन इससे भी कम होने की संभावना है।
हालांकि घरेलू प्रभाग में चावल की आपूर्ति एवं उपलब्धता की स्थिति कुल मिलाकर लगभग संतोषजनक है लेकिन कीमतों में तेजी-मजबूती का माहौल बना हुआ है।
सरकार अपने स्टॉक से चावल उतारने का प्रयास कर रही है मगर इसकी खरीद में व्यापरिक समुदाय कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है।
खरीफ मार्केटिंग सीजन की पीक अवधि के दौरान जब चावल का घरेलू बाजार भाव इतना ऊंचा चल रहा है तब आपूर्ति के ऑफ या लीन सीजन में यह और भी तेज हो सकता है।
अप्रैल-मई में लोकसभा के लिए देश में आम चुनाव होने वाला है और उससे पूर्व खास महंगाई को नियंत्रित करने के प्रयास के तहत सरकार चावल का दाम घटाने की भी पूरी चेष्टा कर रही है। इसे देखते हुए कम से कम जून 2024 तक चावल की निर्यात नीति में कोई बड़ा बदलाव होना मुश्किल लगता है।
आमतौर पर माना जा रहा है कि अगले खरीफ मार्केटिंग सीजन में ही उत्पादन एवं स्टॉक की स्थिति का विश्लेषण-आंकलन करने के बाद सफेद गैर बासमती चावल के निर्यात को खोलने या बंद रखने पर विचार किया जा सकता है। सेला चावल पर भी संशय बना रह सकता है।