iGrain India - पुणे । चीनी मिलों के औसत गन्ना क्रशिंग दिवसों की संख्या 150 से घटकर 120 दिनों की रह गई है और इस तरह इसमें 20 प्रतिशत की गिरावट आ गई है। इसका प्रमुख कारण गन्ना की पैदावार का स्थिर होना है जिससे इकाइयों को क्रशिंग के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल प्राप्त नहीं हो रहा है।
क्रशिंग दिवसों की संख्या में कमी आने से चीनी उत्पादन के लागत खर्च में बढ़ोत्तरी हो रही है। दिलचस्प तथ्य यह है कि देश में चीनी उद्योग में गन्ना क्रशिंग की क्षमता दिनों दिन बढ़ती जा रही है जबकि गन्ना उत्पादन एक निश्चित सीमा में लगभग स्थिर हो गया है।
इसके फलस्वरूप चीनी मिलों में अब ज्यादा दिनों तक गन्ना की पेराई नहीं होती है और मशीनरी तथा वाल्व शक्ति का उपयोग बंद रहता है।
इसके फलस्वरूप चीनी की लागत बढ़ती है और मिलर्स को अनिश्चित खर्च करना पड़ता है। चालू मार्केटिंग सीजन के दौरान तो महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में स्थिति और भी विषम होने की संभावना है क्योंकि प्रतिकूल मौसम के कारण वहां गन्ना की पैदावार में भारी गिरावट आ गई है।
इस विषम हालात से पार पाने के लिए चीनी मिलों को इन संसाधनों के बेहतर एवं वैल्पिक उपयोग का रास्ता तलाशने की जरुरत है। इसके साथ-साथ उसे कार्य दिवसों में बढ़ोत्तरी का मार्ग भी खोजना होगा।
इसके तहत यदि एथनॉल, कम्प्रेस्ड बायोगैस, सीबीजी, डाइड्रोजन तथा अन्य मूल्य संवर्धित उत्पादों के निर्माण पर जोर दिया जाए तो चीनी मिलों को आमदनी का नया स्रोत प्राप्त हो सकता है
सरकार ने वर्ष 2025-26 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथनॉल के मिश्रण का लक्ष्य नियत किया है। इसी तरह औद्योगिक एवं पोर्टेबल उद्देश्यों के लिए अल्कोहल की जरूरतों को पूरा करने के लिए 12,000 मिलियन लीटर अल्कोहल की आवश्यकता पड़ेगी।
सरकार की प्रभावी नीतियों के कारण तेल (पेट्रोलियम) विपणन कंपनियों को एथनॉल की पूर्ति बढ़ी ही। 2022-23 के मर्केटिंग सीजन में यह आपूर्ति बढ़कर 5020 मिलियन लीटर के करीब पहुंच गई जो एक दशक पूर्व की मात्रा 380 मिलियन लीटर से करीब 13 गुणा ज्यादा है। इसी तरह पेट्रोल में एथनॉल के मिश्रण का स्तर भी 2013-14 के 1.5 प्रतिशत से उछलकर 2022-23 में 12 प्रतिशत पर पहुंच गया।