iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दिए अपने एक लिखित नोट में कहा है कि जी एम फसलों को सार्वजनिक रूप से जारी करने अथवा इसके व्यावसायिक उत्पादन पर प्रतिबंध लगाये रखने से किसानों को नुकसान हो रहा है और वह राष्ट्रहित के विरुद्ध है।
भारत के अधिवक्ता ने सर्वोच्च न्यायालय में जो अपना लिखित जवाब जमा करवाया है, यह नोट उसका ही एक हिस्सा है जिसमें खुलासा किया गया है कि पिछले दशक के दौरान भारत में सरसों के बिजाई क्षेत्र एवं उत्पादन में मामूली वृद्धि हुई।
देश की बढ़ती आबादी के साथ खाद्य तेलों की घरेलू मांग एवं खपत बढ़ती जा रही है। मांग एवं आपूर्ति को पाटने के लिए भारत को अपनी कुल आवश्यकता के 55-60 प्रतिशत तेल का विदेशों से आयात करना पड़ रहा है।
इस सरकारी नोट में देश में जीएम फसलों को व्यावसायिक उत्पादन के लिए जारी करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा गया है कि वर्ष 2010-11 के सीजन के दौरान देश में तिलहन फसलों का कुल उत्पादन क्षेत्र 272.20 लाख हेक्टेयर रहा था जो 2022-23 तक आते-आते बढ़कर 302.30 लाख हेक्टेयर पर पहुंचा।
दूसरी ओर देश में खाद्य तेलों की प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक खपत 1950-1960 के 2.9 किलो से उछलकर 2022 में 19.50 किलो पर पहुंच गई।
नोट में कहा गया है कि प्लांट ब्रीडिंग प्रोग्राम को मजबूत बनाए जाने की आवश्यकता है। इसमें नई-नई तकनीक का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए जिसमें जेनेटिक इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी भी शामिल है।
भारतीय कृषि क्षेत्र के समक्ष उत्पन्न हो रही चुनौतियों को दूर करने, घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा विदेशों से आयात पर निर्भरता घटाने के लिए नई तकनीक, विधि एवं प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल बढ़ाने की सख्त जरूरत है।
नई टेक्नोलॉजी का प्रयोग बढ़ने से कृषि फसलों की उत्पादकता एवं कृषक समुदाय की आमदनी बढ़ाने में सहायता मिलेगी और देश तिलहन-खाद्य तेलों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकेगा।
सरसों रबी सीजन की सबसे प्रमुख तिलहन फसल है और देश को स्वदेशी स्रोतों से खाद्य तेलों की सर्वाधिक मात्रा इसी तिलहन से प्राप्त होती है।
इसके उत्पादन में जितना इजाफा होगा, देश उतना ही खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता के नजदीक पहुंचेगा। लेकिन पर्यावरण संगठनों का कहना है कि जीएम फसलों के साइड इफेक्ट को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
दीर्घकालिन अवधि में इसका दुष्परिणाम सामने आ सकता है। जब तक वैज्ञानिक ढंग से इसका पूरी तरह परीक्षण-विश्लेषण नहीं हो जाता तब तक जीएम सरसों की खेती की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।