iGrain India - नई दिल्ली । जनवरी का महीना उत्तरी भारत के लिए शुष्क बना हुआ है। पश्चिमी विक्षोभ का कहीं नामोनिशान नहीं होने से जहां बारिस का अभाव बना हुआ है वहीं भयंकर ठंड एवं घने कोहरे का प्रकोप भी देखा जा रहा है।
अधिकांश उत्तरी राज्यों में सहित लहर चल रही है। मौसम विशेषज्ञों के अनुसार अल नीनो के दौरान यह एक असामान्य घटना है क्योंकि ऐसी हालत में पश्चिमी विक्षोभ आमतौर पर जल्दी सक्रिय हो जाता है जिससे पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी एवं मैदानी इलाकों में बारिश होती है या गरज-चमक के साथ बौछार पड़ती हैं।
यह स्थिति भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने जनवरी में दीर्घकालीन औसत से करीब 22 प्रतिशत अधिक वर्षा होने की संभावना व्यक्त की थी। राष्ट्रीय स्तर पर भी सामान्य स्तर के सापेक्ष 118 प्रतिशत बारिश होने का अनुमान लगाया गया था।
मौसम विभाग ने कहा था कि पश्चिमोत्तर भारत के कुछ भागों में सामान्य से कम वर्षा हो सकती है और पूर्वी राज्यों में भी कहीं-कहीं सामान्य या इससे कुछ कम बारिश होगी।
लेकिन अब तो आंकड़ा सामने आया है उससे पता चलता है कि जनवरी के शुरूआती 23 दिनों में सामान्य स्तर से 56 प्रतिशत कम बारिस हुई। चार मौसम उपखण्डों में वर्षा का भारी अभाव रहा।
इसी तरह 15 उपखंडों में बहुत कम वर्षा हुई जबकि पांच अन्य उपखंडों में बारिश बिल्कुल नहीं हुई। जनवरी के समाप्त होने में कुछ ही दिन बाकी हैं।
हालांकि समीक्षाधीन अवधि के दौरान देश के पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्र एवं उससे सटे दक्षिणी प्रायद्वीप में सामान्य से अधिक वर्षा दर्ज की गई मगर पूर्वोत्तर, पूर्वी एवं मध्य पूर्वी भारत में बारिश का भारी अभाव देखा गया।
पश्चिमी विक्षोभ की निष्क्रियता एवं बारिश की कमी से रबी फसलों की प्रगति पर असर पड़ने की आशंका है। इसकी बिजाई लगभग समाप्त हो चुकी है और बेहतर उत्पादन के लिए मौसम का अनुकूल रहना आवश्यक है।
दिन का तापमान भी बढ़ रहा है। यदि शीघ्र ही अच्छी बारिश नहीं हुई तो विस्तारित रबी (जायद) सीजन में फसलों की बिजाई प्रभावित हो सकती है। ठंडे मौसम से रबी फसलों को कुछ राहत मिल रही है मगर इसके साथ-साथ एकाध वर्षा का होना भी आवश्यक है।