iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार द्वारा सितम्बर 2022 में 100 प्रतिशत टूटे चावल (ब्रोकन राइस) तथा जुलाई 2023 में गैर बासमती सफेद (कच्चे) चावल के व्यापारिक निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया और फिर अगस्त 2023 में सेला चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लागू किया गया।
इसके फलस्वरूप गैर बासमती चावल के कुल निर्यात में जबरदस्त गिरावट आ गई। चालू वित्त वर्ष के शुरूआती आठ महीनों में केवल 76 लाख टन गैर बासमती चावल का निर्यात हुआ जो पिछले वित्त वर्ष की समानावधि के शिपमेंट 115 लाख टन से करीब 33 प्रतिशत कम रहा।
दिसम्बर 2023 में भी केवल 6.49 लाख टन गैर बासमती चावल का शिपमेंट हो सका। सामान्य स्थिति में देश से 14-15 लाख टन चावल का औसत मासिक निर्यात होता रहा है।
हालांकि केन्द्र सरकार ने भारत ब्रांड के तहत 29 रुपए प्रति किलो की दर से चावल की खुदरा बिक्री आरंभ की है लेकिन इसका बाजार भाव नरम पड़ना मुश्किल लगता है।
दिलचस्प तथ्य यह है कि खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत भी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा साप्ताहिक आधार पर चावल की नीलामी की जा रही है मगर इसकी खरीद में व्यापारी कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।
सरकार ने यद्यपि अगस्त में ही बासमती चावल के लिए 1200 डॉलर प्रति टन का ऊंचा 'न्यूनतम निर्यात मूल्य' (मेप) निर्धारित किया था जिससे कुछ समय के लिए इसका शिपमेंट आंशिक रूप से प्रभावित हुआ लेकिन बाद में सरकार ने इस मेप को घटाकर 950 डॉलर प्रति टन नियत कर दिया जिससे बासमती चावल के निर्यात की स्थिति संभल गई।
लेकिन सफेद गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को अभी तक हटाया नहीं गया है और न ही सरकारी स्तर पर इसका ज्यादा शिपमेंट हो रहा है।
सेला चावल पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लागू है लेकिन वैश्विक बाजार भाव ऊंचा होने से इसके शिपमेंट पर ज्यादा प्रतिकूल असर नहीं देखा जा रहा है। भारत से ग़ैर बासमती चावल के सम्पूर्ण निर्यात में सेला चावल की भागीदारी 45 प्रतिशत के करीब रहती है।