iGrain India - नई दिल्ली । भारत संसार में तिलहन-तेल क्षेत्र की पांचवी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था वाला देश है लेकिन विडंबना यह है कि यहां स्वदेशी स्रोतों से खाद्य तेलों का जितना उत्पादन होता है उससे ज्यादा खाद्य तेल विदेशों से आयात किया जाता है।
इसका मतलब यह हुआ कि अगर भारत को खाद्य तेलों के उत्पादन में आत्मनिर्भर होना है तो तिलहनों का घरेलू उत्पादन दोगुने से ज्यादा बढ़ाना पड़ेगा जो कम से कम निकट भविष्य में तो संभव नहीं लगता है। हकीकत यह है कि तिलहनों का घरेलू उत्पादन एक निश्चित सीमा में लगभग स्थिर हो गया है।
केन्द्रीय वित्त मंत्री ने 1 फरवरी को पेश अंतरिम बजट के समय अपने सम्बोधन में कहा कि सरकार तिलहन फसलों के लिए के आत्मनिर्भर अभियान चलायेगी। ज्ञात हो कि अपने पिछले बजट भाषण में भी उन्होंने इसी तरह का प्रस्ताव रखा था मगर इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
वित्त मंत्री ने कहा कि यह अभियान तिलहनों की उच्च उपज दर वाली प्रजातियों के बीच की उपलब्धता सुनिश्चित करेगा, बाजार से सम्पर्क बढ़ाएगा, तिलहनों की खरीद में आने वाली कठिनाई को दूर करेगा, मूल्य संवर्धन को प्रोत्साहित करेगा, फसल बीमा योजना का दायरा फैलाएगा और पांच प्रमुख तिलहन फसलों- सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, तिल एवं सूरजमुखी की खेती में आधुनिक तकनीक के उपयोग को बढ़ावा देगा।
उल्लेखनीय है कि देश तिलहन फसलों (खाद्य श्रेणी) के सकल वार्षिक उत्पादन में इन पांच तिलहन का योगदान करीब 95 प्रतिशत रहता है और यदि इसकी पैदावार तथा औसत उपज दर में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई तो न केवल विदेशों से खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरत क्रमिक रूप से घट सकती है बल्कि भारत से ऑयल मील के निर्यात में भी भारी बढ़ोत्तरी हो सकती है जिससे देश को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा प्राप्त होगी।
सोयाबीन का उत्पादन खरीफ सीजन में तथा सरसों का उत्पादन रबी सीजन में होता है जबकि शेष तीनों तिलहनों- मूंगफली, तिल एवं सूरजमुखी की खेती खरीफ और रबी-दोनों सीजन में होती है।
तिलहन फसलों का बिजाई क्षेत्र तो विशाल रहता है मगर इसकी औसत उपज दर काफी नीचे रहती है इसलिए इसका अपेक्षित उत्पादन नहीं होता है। इस दिशा में विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है अन्यथा आत्मनिर्भरता का लक्ष्य बहुत दूर चला जाएगा।