iGrain India - मुम्बई । हालांकि भारत दुनिया में दलहनों का सबसे प्रमुख उत्पादक देश बना हुआ है मगर फिर भी यहां उत्पादन घरेलू मांग एवं खपत से काफी कम होता है और विदेशों से भारी मात्रा में इसके आयात की आवश्यकता बनी रहती है।
दिल्ली स्थित एक संगठन- कृषि अनुसंधान एवं किसान विकास फाऊंडेशन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जब तक देश में दलहनों की उत्पादकता में वृद्धि नहीं होती है तब तक आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा, विदेशों से आयात की जरूरत बनी रहेगी और कीमतों को नियंत्रित करने में कठिनाई होगी।
कनाडा के साथ राजनयिक विवाद तथा अफ्रीका में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप जैसे कारकों से भी भारत में दलहनों का गंभीर संकट पैदा हो सकता है। भारत में दाल-दलहनों की खपत तेजी से बढ़ती जा रही है।
दलहनों के वैश्विक उत्पादन में भारत का योगदान करीब 25 प्रतिशत तथा कुल वैश्विक खपत में योगदान 27 प्रतिशत रहता है। भारत दलहनों का सबसे बड़ा आयातक देश भी है और कुल वैश्विक आयात में 14 प्रतिशत की भागीदारी रखता है। यहां अरहर (तुवर), मसूर, उड़द एवं राजमा जैसे दलहनों का भारी आयात होता है। अब पीली मटर का आयात भी शुरू हो गया है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2023 के दौरान भारत में करीब 268 लाख टन दलहनों का उत्पादन हुआ जबकि वर्ष 2030 तक दलहनों की मांग एवं आपूर्ति के बीच अंतर बढ़कर 80 लाख टन के करीब पहुंच जाने का अनुमान है।
कुल खाद्यान्न में दलहनों के उत्पादन की भागीदारी केवल 10 प्रतिशत रहती है जबकि क्षेत्रफल में इसकी हिस्सेदारी बढ़कर 23 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
फाउंडेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्पादकता पर ध्यान दिये बगैर दलहनों में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करना संभव नहीं होगा क्योंकि इसके क्षेत्रफल में ज्यादा बढ़ोत्तरी की गुंजाईश नहीं है जबकि घरेलू मांग एवं खपत नियमित रूप से बढ़ती रहेगी।
दलहनों के नए-नए उन्नत बीज के अनुसंधान एवं विकास की गति भारत में अफ्रीका देशों से भी पीछे है। जब तक दलहनों की औसत उपज दर में मौजूदा स्तर के मुकाबले दोगुनी वृद्धि नहीं होती है तब तक इसके आयात की आवश्यकता बनी रहेगी।
तुवर के उत्पादन में भारत दुनिया में सबसे आगे है मगर यहां इसकी उपज दर कुछ अफ्रीकी देशों से भी काफी नीचे रहती है। जहां तक चना का सवाल है तो भारत में इसकी उच्चतम औसत उपज दर 1400 किलो प्रति हेक्टेयर है जबकि चीन तथा इजरायल जैसे देशों में 4500 किलो प्रति हेक्टेयर तक पहुंच चुकी है।