iGrain India - नई दिल्ली । चालू रबी सीजन के दौरान देश में सरसों का उत्पादन उछलकर नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच जाने का अनुमान है क्योंकि एक तो इसके बिजाई क्षेत्र में भारी बढ़ोत्तरी हुई है और दूसरे, मौसम की हालत भी काफी हद तक फसल के अनुकूल रही है।
प्रमुख उत्पादक राज्यों की थोक मंडियों में सरसों का दाम पहले से ही सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे चल रहा है जबकि आगामी समय में यह लुढ़ककर और भी नीचे आ सकता है।
इससे चिंतित और परेशान एक किसान संगठन ने पिछले दिन केन्द्रीय कृषि मंत्री को एक ज्ञापन दिया जिसमें यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि किसानों के मंडियों में समर्थन मूल्य से नीचे दाम पर अपनी सरसों बेचने के लिए विवश न होना पड़े।
कृषि मंत्रालय की अधीनस्थ एजेंसी- नैफेड ने संकेत दिया था कि 2023-24 के रबी सीजन के दौरान किसानों से एमएसपी पर 20-25 लाख टन तक सरसों की खरीद की जा सकती है जबकि 2022-23 के सीजन में 12 लाख टन की खरीद की गई थी।
उद्योग-व्यापार समीक्षकों का मानना है कि समीक्षाधीन सीजन के दौरान सरसों का घरेलू उत्पादन 113 लाख टन से उछलकर 130 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंच सकता है। इसके फलस्वरुप मार्च से जून तक मंडियों में इसकी विशाल आपूर्ति होगी और कीमतों में भारी गिरावट आने की आशंका बनी रहेगी।
सरकार ने सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2022-23 सीजन के 5450 रुपए प्रति क्विंटल से 200 रुपए बढकर 2023-24 के सीजन हेतु 5650 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है जबकि इसका थोक मंडी भाव 5000/5100 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।
कुछ मंडियों में नई सरसों की आवक शुरू हो गई है जो आगामी दिनों में नियमित रूप से बढ़ती जाएगी। समीक्षकों का कहना है कि यदि सरकारी खरीद में देर हुई तो लूज सरसों का दाम घटकर नीचे में 4000 रुपए प्रति क्विंटल तक आ सकता है।
हैफेड द्वारा हरियाणा में किसानों से सरसों खरीदी जाती है। सरसों के प्रमुख उत्पादक राज्यों में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, बिहार एवं आसाम आदि शामिल है जबकि छत्तीसगढ़, पंजाब एवं झारखडं सहित कुछ अन्य राज्यों में भी इसका उत्पादन होता है।