iGrain India - ब्रुसेल्स । ऐसा प्रतीत होता है कि यूरोपीय आयोग (ईपी) अपने बासमती चावल के लिए पाकिस्तान को भी भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग हासिल करने में सहायता देने का प्रयास कर रहा है जबकि उसने इस संबंध में भारत द्वारा किए गए आवेदन को जुलाई 2019 से ही ठंडे बस्ते में डाल रखा है।
समझा जाता है कि भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार संधि के लिए जारी बातचीत के क्रम में यूरोपीय आयोग इसी बहाने भारत पर दबाव बढ़ाने तथा संधि के प्रावधानों पर मोल भाव करने की कोशिश कर सकता है।
एक पखवाड़ा पूर्व आयोग के अपने आंकड़ों को सार्वजनिक किया था जिसमें यह दिखाया गया था कि पाकिस्तान ने भी अपने बासमती चावल के लिए जी आई टैग हेतु आवेदन किया है लेकिन पाकिस्तान के आवेदन जमा करने का सम्पूर्ण पहलू ही हैरानी भरा है।
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान सरकार 28 अगस्त 2023 को बासमती चावल की अपनी परिभाषा प्रकाशित की थी जो जी आई टैग प्राप्त करने के लिए अनिवार्य होती है।
हैरानी की बात यह है कि यूरोपीय आयोग के डेटाबेस में दिखाया गया है कि पाकिस्तान ने 24 अगस्त 2023 को अपनी स्थिति स्पष्ट की थी। इससे संकेत मिलता है कि दोनों पक्षों के बीच काफी सक्रिय सम्पर्क बना हुआ था और संभवतः आयोग के इशारे पर ही पाकिस्तान सरकार ने आन्न फानन में बासमती की परिभाषा जारी करते हुए तत्काल यूरोपीय आयोग के पास जी आई टैग का आवेदन भी जमा करवा दिया।
भारत बासमती चावल का सबसे बड़ा उत्पादक एवं निर्यातक देश है। इसका जी आई टैग का आवेदन वहां पिछले साढ़े पांच वर्षों से लंबित पड़ा है जिस पर अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है लेकिन पाकिस्तान के आवेदन को जल्दी ही सार्वजनिक कर दिया गया।
अब सवाल उठता है कि जब पाकिस्तान ने 24 अगस्त को आवेदन कर दिया था तब उसे छुपाने की क्या जरूरत पड़ गई और अब उसे सार्वजनिक क्यों दिखाया गया। इससे तो ऐसा लगता है कि पाकिस्तान और यूरोपीय अधिकारियों के बीच कुछ सांठ गांठ हुई है।
यूरोपीय आयोग के पास इसकी जांच-पड़ताल लंबित है। इसकी प्रक्रिया चल रही है इसलिए इस स्थिति में कोई और सूचना प्रकाशित नहीं की जा सकती है। आयोग ने अपने आंकड़ा संग्रह में पाकिस्तान के जी आई रजिस्ट्रेशन करके आवेदन को पहले ही कैसे स्वीकार कर लिया। यह गंभीर चिंतन का विषय है।