iGrain India - पुणे । महाराष्ट्र को चीनी उद्योग में सहकारिता आंदोलन का जनक माना जाता है जहां क्रियाशील चीनी मिलों की संख्या प्राइवेट क्षेत्र से अधिक रहती है। लेकिन अब परिदृश्य बदलने लगा है।
2022-23 के सीजन में वहां दोनों क्षेत्रों की चीनी मिलों (क्रियाशील) की संख्या एक समान यानी 105-105 हो गई थी जबकि 2023-24 के वर्तमान सीजन में प्राइवेट क्षेत्र की 104 चीनी मिलों में गन्ना की क्रशिंग आरंभ हुई जबकि सहकारी क्षेत्र में 103 चीनी मिलें ही क्रियाशील हो सकीं।
उद्योग समीक्षकों के अनुसार दिलचस्प तथ्य यह है कि इस बार सहकारी क्षेत्र में जो 103 चीनी मिलें क्रियाशील हुई हैं उसमें से 12 इकाइयों का संचालन प्राइवेट मिलर्स द्वारा किया जा रहा जिसका उसे कांट्रेक्ट (ठेका) दिया गया है।
2010-11 के मार्केटिंग सीजन के दौरान महाराष्ट्र में कुल 164 चीनी मिलों में गन्ना की क्रशिंग हुई थी जिसमें प्राइवेट चीनी मिलों की भागीदारी केवल 25 प्रतिशत थी।
वर्ष 2019-20 का सीजन आते-आते यह हिस्सेदारी बढ़कर 46 प्रतिशत पर पहुंच गई जबकि 2023-24 के मौजूदा सीजन में प्राइवेट इकाइयों की संख्या सहकारी चीनी मिलों से आगे निकल गई।
समझा जाता है कि सहकारी चीनी मिलों में वित्तीय प्रबंधन ठीक से नहीं होता है और उसमें प्रोफेशनल मैनेजमेंट का अभाव रहता है। इसके अलावा राजनीतिक लाभ के लिए सहकारी चीनी मिलों का दोहन भी बड़े पैमाने पर किया जाता है।
इन सभी कारणों से सहकारी चीनी मिलों की क्षमता एवं कार्य कुशलता प्रभावित होती है और वे अक्सर घाटे में रहती है। बाद में राज्य सरकार को इसकी क्षतिपूर्ति करनी पड़ती है।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान सहकारी क्षेत्र की अनेक चीनी मिलों को गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा है और बैंकों द्वारा अपने ऋण की रिकवरी के लिए उसकी परिसम्पत्तियों को जब्त भी किया गया है। समीक्षकों के अनुसार सहकारी चीनी मिलों में कार्य कुशलता, अनुशासन एवं प्रबंधन की कमी है इसलिए उसका प्रदर्शन कमजोर रहता है।
वेस्टर्न इंडिया शुगर मिल्स एसोसिएशन (विस्मा) के अध्यक्ष ने आगामी वर्षों के दौरान प्राइवेट चीनी मिलों की संख्या निरंतर बढ़ते रहने की संभावना व्यक्त की है।